हम जो करें, हम जो कहे, वही सही बाकी सब गलत। किसी भी मुद्दे पर विपक्ष हमें नसीहत न दे या कांग्रेस हमें राष्ट्रभक्ति का पाठ न पढ़ाएं जैसे संवाद भाजपा नेताओं के लिए किसी तकिया कलाम की तरह हो चुके हैं। विपक्षी नेताओं की हर बात और विरोध राष्ट्रीय व्यंग में हवा में उड़ा देना जैसे भाजपा का स्वभाव बन चुका है। भाजपा की यह राजनीतिक हट बेवजह नहीं है। बीते समय में मिले उसे प्रचंड बहुमत और जनसमर्थन ने उसे जिद्दी बनाया है। उसकी यह हट राजनीति अगर जन सरोकारों के लिए होती तो निश्चित रूप से उसके लिए इसके परिणाम भी सकारात्मक रहते लेकिन अगर यह सिर्फ निजी सत्ता स्वार्थों पर केंद्रित हो जाए तो स्वयं के लिए ही घातक होगी। उत्तराखंड की सरकार ने कल कैबिनेट में जो चारधाम यात्रा को शुरू करने का फैसला लिया है वह इसका ताजा उदाहरण है। खास बात यह है कि सरकार हाईकोर्ट के उस निर्देश जिसमें यात्रा को स्थगित रखने या आगे की तिथि बढ़ाने की बात कही गई थी उसको भी नजरअंदाज करते हुए लिया गया है। सरकार 1 जुलाई यानी 4 दिन बाद यात्रा की शुरुआत करने जा रही है जबकि अदालत 28 जून को इस मामले की फिर सुनवाई करने वाली है। सरकार द्वारा इस यात्रा के लिए की गई तैयारियों से कोर्ट सहमत नहीं था तभी उसने सरकार से यात्रा स्थगित रखने को कहा था सवाल यह है कि सरकार दो—तीन दिन में ही क्या इस यात्रा की तैयारियों को दुरस्त कर देगी? सरकार न तो कोर्ट के निर्देशों पर ध्यान देने को तैयार है और न इस बात को समझने को तैयार है कि कोरोना का संकट अभी भी टला नहीं है। भले ही कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम हो गया हो लेकिन विशेषज्ञों द्वारा जिस तरह से 6 से 8 सप्ताह में तीसरे लहर के आने की संभावनाएं जताई जा रही है तथा इस तीसरी लहर में डेल्टा प्लस वैरियंट से कई गुना अधिक संक्रमण फैलने व बच्चों पर उसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की बात कही जा रही है उसके मद्देनजर चारधाम यात्रा शुरू करने में की जा रही जल्दबाजी को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन सरकार कुंभ मेले को दिव्य व भव्य बनाने पर की गई जिद की तरह ही अब चारधाम यात्रा को भी शुरू करने की जिद पर अड़ी हुई है जबकि यह समय उसे तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करने का है। जिसे लेकर सरकार का उदासीन रवैया बना हुआ है। वैसे भी अब मानसून काल में इस यात्रा को शुरू करके सरकार को कुछ हासिल नहीं होना है क्योंकि इस यात्रा का कुछ लाभ तभी संभव है जब देश—विदेश से भी लोग इस यात्रा पर आ पाते।