काम या राम भरोसे भाजपा

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भले ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का यह कहना है कि विपक्षी दलों के पास जो मुद्दे हैं वह उनका चुनावी एजेंडा है जबकि भाजपा के पास विकास का एजेंडा है। उनके इस कथन से ऐसा लगता है कि जैसे भाजपा ने 2017 में अपनी सरकार बनने के बाद सूबे में विकास की गंगा बहा दी हो। अगर वास्तव में भाजपा ने इन साढ़े चार साल में विकास के थोड़े बहुत काम भी किए होते तो उसे चुनाव से एन पूर्व दो—दो मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत शायद नहीं पड़ी होती। अभी बीते दिनों आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दून आए थे। उन्होंने अपनी पत्रकार वार्ता में भाजपा की सरकार को खुली चुनौती दी थी कि वह भाजपा के किसी भी नेता से खुली बहस के लिए तैयार है वह सरकार का एक भी विकास कार्य बताएं तो सही। यह एक अहम सवाल है कि आम आदमी पार्टी की इस चुनौती को भाजपा ने क्यों स्वीकार नहीं किया? अब मुख्यमंत्री धामी कह रहे हैं कि वह मुफ्त की सौगातें बांटने की राजनीति नहीं करते भाजपा विकास की राजनीति करती है। जब लोग पूछ रहे हैं तो वह बताएं तो सही कि उनकी सरकार ने पूरे कार्यकाल में कितनी विकास योजनाओं को धरातल पर उतारा? यूं तो भाजपा के नेताओं का नारा रहा है ट्टबातें कम काम ज्यादा, लेकिन धरातल का सच इसके बिल्कुल उलट ही है वह सिर्फ नारे व नए—नए मुहावरे ज्यादा गढ़ते हैं काम बहुत कम करते हैं। चार साल सूबे के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की घोषणा से अपना काम शुरू किया था लेकिन चार साल में भी एनएच—74 घोटाले की जांच सीबीआई से नहीं करा सके और न ही लोकायुत्तQ का गठन कर सके। अपने पूरे कार्यकाल में रिस्पना को ऋषिपर्णा बनाने, गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने तथा देवस्थानम बोर्ड का गठन करने व घसियारी योजना की घोषणा के सिवाय और उन्होंने क्या किया था? इन में सिर्फ देवस्थानम बोर्ड का गठन हुआ बाकी कोई भी धरातल पर नहीं उतर सका। इसे लेकर भी बवाल मचा हुआ है और सरकार अब इस पर विचार के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाकर इसे ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास कर रही है। भाजपा के अंदर अब अपनी ही नीतियों में बदलाव पर चिंतन मंथन हो रहा है और उसे खुद समझ नहीं आ रहा है कि वह किन मुद्दों को लेकर जनता के सामने जाए। इस बार कांग्रेस के तेवर तल्ख है ही साथ ही आम आदमी पार्टी भी मैदान में कूद पड़ी है ऐसे में भाजपा के लिए 2022 की राह कतई भी आसान होने वाली नहीं है। मुख्यमंत्री धामी जिस नीति और रीति से आज काम कर रहे हैं काश भाजपा ने सत्ता में आने के पहले दिन से ही ऐसे ही काम किया होता।

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