कांवड़ यात्रा धामी सरकार का बड़ा इम्तिहान

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यूपी, हरियाणा के हरी झंडी देने से उत्तराखंड में यात्रा रोक पाना असंभव
देहरादून। 25 जुलाई से शुरू होने वाली कावड़ यात्रा धामी सरकार के लिए गले फंसी हड्डी बन गई है। कुंभ मेले को लेकर जो फजीहत त्रिवेंद्र और तीरथ की हो चुकी है, वैसी ही कावड़ यात्रा को लेकर उनकी भी फजीहत न हो इसे लेकर मुख्यमंत्री धामी फूंक—फूंक कर कदम रख रहे हैं। उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार द्वारा कावड़ यात्रा को हरी झंडी दिए जाने से उनकी मुश्किलें और भी अधिक बढ़ गई हैं। अगर धामी कांवड़ यात्रा की इजाजत नहीं देते तो वह सिर्फ शिव भत्तQों की नाराजगी का ही शिकार नहीं होंगे। यूपी, हरियाणा व दिल्ली से आने वाले तीन करोड़ कांवड़ियों को सीमा पर बलपूर्वक रोक पाना उनके लिए आसान काम नहीं होगा और अगर यात्रा की अनुमति दे दी तो कोविड गाइडलाइन का अनुपालन उनकी कड़ी परीक्षा लेगा।
पुष्कर धामी की कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि कावड़ यात्रा को लेकर वह करें तो क्या करें। अब तक कई दौर की वार्ताओं और केंद्रीय नेताओं से विचार मंथन के बाद भी वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। आज एक बार फिर वह डीजीपी व मुख्य सचिव सहित तमाम आला अधिकारियों से इस मुद्दे पर मंथन कर रहे है। डीजीपी पहले कावड़ यात्रा पर रोक लगाने का समर्थन कर चुके हैं खुद सीएम का भी यही कहना है कि आस्था जरूरी है लेकिन जान की सुरक्षा उससे भी ज्यादा जरूरी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री कोई बीच का रास्ता तलाश रहे हैं। अगर सीमित संख्या में और कड़े नियमों के साथ कावड़ यात्रा की अनुमति दी जाती है तब भी कावड़ियों की भारी भीड़ से निपट पाना या उनकी कोरोना जांच संभव नहीं है। कानून व्यवस्था को बनाए रखना इस दौरान बड़ी चुनौती होगा। वहीं अगर कावड़ यात्रा के कारण कोरोना के मामले बढ़ते हैं तो फिर महाकुंभ जिसे कोरोना स्पाइडर के रूप में देखा गया सरकार की फिर से किरकिरी हो सकती है। भाजपा नेता एक तरफ शिव भत्तQों की भावनाओं को भी आहत नहीं करना चाहते वही उनके पास किसी भी विसंगति पूर्ण स्थितियों से निपटने के भी इंतजाम नहीं है यही कारण है कि सीएम धामी के सामने कावड़ यात्रा को लेकर आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति बनी हुई है।

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