उत्तराखंड विधानसभा चुनाव सर पर खड़ा है, लेकिन कांग्रेस का आंतरिक कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जहां भाजपा और आप इन दिनों दिन रात चुनावी तैयारियों में जुटे हैं वहीं कांग्रेसी नेता अभी कुर्ता घसीटन में व्यस्त दिख रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के समय दर्जनभर भारी—भरकम नेताओं के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के बाद माना जा रहा था कि अब प्रदेश कांग्रेस के पास जब गिने—चुने बड़े नेता ही बचे हैं तो वह मिल जुलकर पार्टी को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे लेकिन यह भी नहीं हो सका। कांग्रेस के विधायकों की संख्या जब दर्जन भर से भी कम रह गई तब यह सोचा गया कि शायद इन कांग्रेसी नेताओं द्वारा इससे सबक लिया जाएगा लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस की गुटबंदी जारी रही। तीन—तीन उपचुनाव और नगर निगम चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेसी नेता यह समझने को तैयार नहीं हुए कि पार्टी है तो वह है और उनका वजूद भी है जब पार्टी नहीं होगी तो उनका भी क्या अस्तित्व रहेगा।
नेता विपक्ष इंद्रा हृदयेश के निधन के बाद पार्टी को जो क्षति हुई उसकी भरपाई की सोचने की बजाए इन नेताओं ने नेता विपक्ष के पद को लेकर भी अवसरों की तलाश शुरू कर दी। प्रदेश कांग्रेस के नेता है जो पहले से ही सीएम का चेहरा कौन हो तथा सामूहिक नेतृत्व या सीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने के मुद्दे पर लड़ रहे थे, इंदिरा के जाने के बाद यह जंग और भी तेज हो गई। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व उनके समर्थक चाहते है कि हरीश रावत के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाना चाहिए और प्रदेश के चुनाव से लेकर संगठन तक की सभी जिम्मेवारियंा उनके ही पास रहे। प्रीतम सिंह को नेता विपक्ष बनाकर उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाए। इंद्रा हृदयेश के जाने के बाद अब बचा ही कौन है एक प्रीतम सिंह ही तो है। हरीश रावत के समर्थक अब उन्हें भी निष्क्रिय बनाने पर आमादा है। सवाल यह है कि क्या हरीश रावत अकेले पार्टी संगठन को चलाने और पार्टी को चुनाव जिताने के लिए काफी हैं? इंद्रा हृदयेश अपनी अंतिम सांस तक इसका विरोध करती रही। उनका कहना था कि पिछला चुनाव भी तो हम हरीश रावत के चेहरे पर और नेतृत्व में लड़े थे हमने क्या कर लिया था? और पार्टी संगठन की कमान को लेकर लंबे समय से कांग्रेसियों की यह लड़ाई दिल्ली में चल रही है जिनके कारण वह एक नेता विपक्ष तक के नाम पर फैसला नहीं कर सके हैं। पार्टी की पूरी कमान हरीश रावत को देने की खबर आई तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट कल देहरादून आ गए और पत्रकार वार्ता में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की पैरवी करते दिखे यह पैरवी सही मायने में प्रीतम सिंह की पैरवी है। सवाल यह है कि उत्तराखंड कांग्रेस के नेता क्या इसी सूरते हाल में 2022 का चुनाव जीतने का सपना देख रहे हैं? और यह नेता सब कुछ गवंा बैठने के बाद भी क्यों कुछ भी समझने को तैयार नहीं है।