उत्तराखण्ड की राजनीति में आखिर चल क्या रहा है?

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देहरादून। उत्तराखण्ड में राजनीति का ऊंट करवट बैठने वाला है इस पर लोग केवल कयासबाजियां ही कर रहे हैं। एक तरफ जहां सीएम तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने की चर्चाएं आम हैं वहीं कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी तनातनी चल रही है।
उत्तराखण्ड में आठ माह बाद चुनाव होने हैं। उस हिसाब से देखा जाए तो यह चुनावी साल चल रहा है। इस चुनावी साल में राजनैतिक पार्टियां जनता के बीच जा कर अपनी जड़े मजबूत करने के लिए जुटती लेकिन उत्तराखण्ड में तो राजनीति में उलटफेर का समय ही चल रहा है। उत्तराखण्ड में जहां सत्ताधारी दल में सीएम बदलने के बाद से उथल—पुथल का दौर चल रहा है वहीं कांग्रेस में भी हालात ठीक नहीं हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जहां सीएम बदल कर पूर्व सीएम के समर्थकों को नाराज किया है वहीं वर्तमान सीएम के कई ऐसे बयान आ चुके हैं जिनसे भाजपा संगठन और सरकार दोनों की ही किरकिरी को चुकी है। अब दो दिनों से सीएम का डेरा दिल्ली दरबार में ही लगा हुआ है। लेकिन स्थिति साफ नहीं हो पा रही है कि आखिर हाईकमान क्या फैसला कर रहा है।
वहीं पिछले छह दिनों से दिल्ली हाईकमान के दरबार में उत्तराखण्ड में नेता प्रतिपक्ष चुनने और प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर कोई निष्कर्म पर नहीं पहुंचा जा सका है। हालांकि इस दौरान सोशल मीडिया पर कई समर्थकों ने प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष और गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष चुने जाने की बधाई तक दे डाली। जबकि दिल्ली से ऐसी कोई खबर आई ही नहीं है। सूत्रों के हवाले इतनी बात जरूर बाहर आ रही थी कि उत्तराखण्ड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने नेता प्रतिपक्ष बनने को हामी भर है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का पद अपने पसंदीदा व्यक्ति को दिए जाने की शर्त पर लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
इन छह दिनों में न तो नेता प्रतिपक्ष ही चुना जा सका है और न ही प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर अब तक कोई फैसला ही हो पाया है। हालांकि नेताओं ने गेंद हाईकमान के पाले में डाल दी है। चुनावी साल में जहां दोनों राष्ट्रीय पार्टियां उत्तराखण्ड में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने का दावा कर रही थीं वहीं इनके नेता और विधायक अपने—अपने हाईकमान के दरबार में हाजिरी दे कर बैठे हुए हैं। न तो पार्टी पदाधिकारियों और न ही सरकार को इस बात की चिंता है कि चुनाव से पहले जनता की कई समस्याओं का निस्तारण किया जाना बेहद जरूरी है।
वहीं आम आदमी पार्टी ने इन दोनों पार्टियों से एक कदम आगे बढ़ कर गंगोत्री विधानसभा सीट के लिए अपना प्रत्याशी तक घोषित कर दिया और सीएम को हराने का दावा तक कर दिया। जबकि अभी तक भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के चुनाव को लेकर कोई घोषणा भी नहीं की है। इन सब हालात को देखते हुए अब यही कहा जा रहा है कि आखिर उत्तराखण्ड की राजनीति में चल क्या रहा है।

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