देहरादून। जहां मातृशक्ति का अपमान हो वहां यज्ञ का भी कोई महत्व नहीं रहता है। हमारी संस्कृति और पुराणों में ऐसे कई उदाहरण है। सनातन धर्म में इस बात का उल्लेख अनेक जगह किया है कि जहां स्त्रियों का सम्मान किया जाता है वहां देवता वास करते हैं यह बात आज गढ़वाल सभा भवन में आयोजित शिव महापुराण कथा सुनते हुए आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने कहीं।
आचार्य ने कहा कि राजा दक्ष ने शिव का तिरस्कार करते हुए अपनी पुत्री सती का अपमान किया था तो दक्ष का यज्ञ भंग हो गया था और शिव ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया था। उन्होंने कहा कि वही सती जब शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी तो उनके तप भंग करने के लिए सप्त ऋषियों को भेजा गया था। जिन्होंने सती को शिव की निंदा करते हुए समझाया था कि वह तो जंगल वासी है शिव के पास न घर है न बार, ना पहनने को कपड़े हैं लेकिन दृढ़ प्रतिज्ञारत सती ने उनसे कहा था कि तुम्हें जिसने भेजा है उसे ही मेरे पास भेजना मैं अगर पति के रूप में किसी को स्वीकार करूंगी तो सिर्फ शिव को ही स्वीकार करूंगी।
आचार्य ममगाई ने कहा कि शाश्वत संसार में शिव व सती का ही स्वरुप है। हर स्त्री सती स्वरूप है और हर पुरुष शिव स्वरूप। धर्म, प्रेम व समर्पण से संबंध और संसार चलता है जहां भी घर परिवार व समाज में, धर्म प्रेम और समर्पण है वहीं हर प्रकार का सुख भी है यही कारण है कि प्रेम, धर्म और समर्पण के प्रतीक शिव सती के गीत आज भी भारतीय विवाह समारोहो मेंं गाए जाते हैं। इस अवसर पर लक्ष्मी बहुगुणा, सुजाता पाटनी, कमला नौटियाल, सरस्वती रतूड़ी, मंजू बडोनी, रोशनी सकलानी, सुषमा थपलियाल, चंद्रा बडोनी, नंदा तिवारी, संतोष गैरोला, लक्ष्मी गैरोला, शकुंतला नेगी आदि कई लोग उपस्थित थे।