उधार लो और घी पियो

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बीते कल कैग ने सदन में वित्तीय वर्ष 2019—20 का जो लेखा—जोखा पेश किया है वह सरकार को आईना दिखाने वाला है। इस रिपोर्ट के अनुसार कैग को 100 करोड़ के खर्च का कोई हिसाब—किताब नहीं दिए जाने की बात कही गई है वहीं सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहां गया है कि सरकार बेवजह का कर्ज लेकर अनावश्यक खर्च बढ़ा रही है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खराब वित्तीय प्रबंधन के कारण योजनाओं पर पूरा पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2019 2020 के वित्तीय वर्ष में विभिन्न योजनाओं के आवंटित धन को जो समय पर खर्च न किए जाने के कारण इन विभागों को 259 करोड़ सरकार को सरेंडर करना पड़ा है। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कह रहे हैं कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा इसके लिए विस्तृत कार्य योजना बनाई जाएगी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान सरकार ने 51 सौ करोड़ रुपए बाजार से ऊंची ब्याज पर लोन लिया जिसकी उसे कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि सरकार के हाथों में पर्याप्त धन पड़ा था। यह हास्यापद ही है कि वित्त विभाग अपने बैंक खातों में धन होने के बाद भी क्यों कर्ज ले रहा है और क्यों कर्ज का बोझ बढ़ा रहा है तथा क्यों ब्याज के रूप में धन की बर्बादी कर रहा है। जब भाजपा ने 2016—17 में सत्ता संभाली थी तब प्रदेश सरकार पर 44 हजार करोड़ का कर्ज था जो 2019—20 में 66 हजार करोड़ पहुंच गया है। अगर यह सरकार के गलत वित्तीय प्रबंधन का नतीजा नहीं है तो और क्या है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के वित्त प्रबंधन पर ही सवाल नहीं उठाए हैं अपितु सरकार को अपने खर्चों पर लगाम लगाने की नसीहत भी दी है। दरअसल राज्य गठन से लेकर अब तक की सरकारों ने यही किया है कि जब पैसे की कमी हो तो बाजार से कर्ज ले लो लेकिन अपने शाही ठाट—बाट में कोई कमी न आने दो। सरकार की स्थिति यह है कि वह कमाती चवन्नी है और उसका खर्चा रुपैया है। उधार लेकर घी पीने की उसकी आदत सी हो गई है। सरकार अपना धन वसूलने में भी फिसड्डी साबित हुई है। सरकारों द्वारा लिए जाने वाला कर्ज अब इतना बढ़ चुका है कि उसकी कारी कमाई इसका ब्याज चुकाने में ही चली जाए। सरकार के तमाम सरकारी उपक्रम करोड़ों के घाटे में चल रहे हैं बात उत्तराखंड परिवहन विभाग की करें तो वह 550 करोड़ के घाटे में है वही यूपीसीएल का घाटा 577 करोड़ पर पहुंच गया है। सरकार इन बीमार उपक्रमों की सेहत सुधारने के लिए कुछ कर नहीं पा रही है और उनकी परिसंपत्तियों को बेचकर घाटा पूरा करना चाहती है। मुख्यमंत्री धामी इन दिनों चुनावी सौगातों पर हजारों करोड़ खर्च कर रहे हैं। जबकि सरकार एड़ी चोटी तक कर्ज में डूबी हुई है और यह सब हुआ है सरकारों के गलत वित्तीय प्रबंधन के कारण।

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