उत्तराखंड में राजनीतिक दल अक्सर स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरते रहते हैं। आंदोलन करते हैं और सोशल मीडिया पर अक्सर अपने बयानों को लेकर छाए रहते हैं। लेकिन अब चुनावी साल को देखते हुए राजनीतिक दलों ने भी अपनी रणनीति में बदलाव कर दिया है। राजनीतिक दल के नेता अब स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। अपने शासनकाल में जिस कांग्रेस ने दूरस्थ क्षेत्रों की समस्याओं को कभी आंख उठाकर भी देखा तक नहीं था, अब उसी कांग्रेस के नेता देशभर में जगह—जगह परिवर्तन यात्रा निकालकर जनता की समस्याओं को गिना रहे हैं। वही सत्ता पक्ष के नेता भी अपने साढें़ चार साल के शासन की उपलब्धियों को गिनाते हुए नित नई घोषणाएं कर रहे हैं साथ ही उन्हें जल्द पूरा करने का आश्वासन भी जनता को दे रहे हैं। नेताओं की इन चुनावी घोषणाओं और आश्वासनों पर जनता आसानी से भरोसा कर लेती है क्योंकि उन्हें तो अपनी समस्याओं का समाधान चाहिए। न तो सत्ता पक्ष ने इन साढ़े चार वर्षों में युवाओं और बेरोजगारों के बारे में सोचा और न विपक्ष ने कभी इसके लिए आवाज उठाई। कभी कभार ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर या धरना प्रदर्शन कर ज्ञापन देने भर तक ही राजनीतिक दल सिमटे रहे लेकिन अब जाकर उन्हें लगने लगा है कि अगर चुनाव जीतना है तो युवाओं,ं बेरोजगारों को सबसे पहले अपने पक्ष में लाना जरूरी है। जिसके चलते अब सभी राजनीतिक दलों को इनकी याद सताने लगी है अब प्रदेश के स्थानीय मुद्दे भी चुनावी मुद्दे बन गए हैं। राजनीतिक दलों के लोग अब इनके लिए आवाज उठा रहे हैं और सरकार को कोस रहे हैं तो वहीं सरकार भी इन साढ़े चार साल में किए गए कामों को गिनवाकर साथ ही नई घोषणाएं कर जनता को भरोसे में लेने में जुट गई है। अब नेता हो या कार्यकर्ता सभी को बस चुनाव ही नजर आ रहा है। प्रदेश में जितने भी राजनीतिक दल हैं उन्हें अब स्थानीय समस्याएं और स्थानीय मुद्दे नजर आने लगे हैं आखिर चुनाव का सवाल जो है। अब चुनावी वर्ष में प्रदेश की जनता किसका पलड़ा भारी करती है यह तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन इतना जरूर है कि इन दिनों नेताओं ने गांवों और पहाड़ों की पगडंडियों नापना शुरू कर दी है।