सरकारी मशीनरी लगा रही है विकास को पलीता
अधिकारी कम बजट खर्च की कर रहे हैं अब समीक्षा
मार्च के दूसरे सप्ताह में आएगा राज्य का नया बजट
देहरादून। एक तरफ जहंा केन्द्र सरकार द्वारा अपने केन्द्रीय बजट के प्रचार प्रसार के लिए मंत्री और सांसदो की पूरी फौज को देश भर के राज्यों में उतार दिया गया है वहीं उत्तराखण्ड सरकार का हाल यह है कि वह अपने पुराने बजट का आधा धन भी खर्च नहीं कर सकी है जबकि नया बजट सर पर है।
सत्ता में बैठे लोगों द्वारा भले ही राज्य में विकास कार्यों को आगे बढ़ाने में कोई कमी न रखने की बात कही जाती हो लेकिन सरकार में बैठे नौकरशाहों और नेताओं की सुस्ती का आलम यह है कि विकास कार्यों के लिए उपलब्ध धन का भी वह समय रहते सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और विकास को पलीता लगाने का काम किया जा रहा है। कई विभागों का कहना है कि जब सरकार में बैठे मंत्रियों द्वारा विकास कार्यों की डीपीआर ही नहीं पेश की जाएगी तो धन का आवंटन कैसे होगा। वही मंत्रियों का कहना है कि अधिकारियों को फाइलों को इस टेबल से उस टेबल पर खिसकाने की आदत पड़ चुकी है। मामूली से मामूली बातों को लेकर फाइलों पर आपत्तियों का टैग लगा कर वापस भेज दिया जाता है। बीते समय में कई विभागीय अधिकारियों के साथ कुछ मंत्रियों की नोक—झोंक भी देखी जाती रही है। बजट का सही समय और सही उद्देश्यों के लिए खर्च न हो पाने के पीछे नौकरशाहों और नेताओं के बीच तनातनी भी एक अहम कारण रहा है। अकेले एक पंचायती राज विभाग को छोड़कर कोई भी विभाग अपना पूरा बजट खर्च नहीं कर सका है। कुछ विभागों का तो 60 से 70 फीसदी तक बजट बकाया पड़ा है। अब सवाल यह है कि 1 महीने में कोई 1 साल का राशन एक साथ तो खा नहीं सकता है। और अगर खा लिया तो पचा नहीं सकता। अंतिम माह में बजट को खर्च किए जाने का मतलब बजट को खर्च करना नहीं खपाना ही होता है। अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन अब 9 फरवरी तक सभी विभागों की विभागवार समीक्षा बैठक कर यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि ऐसा आखिर क्यों हुआ? लेकिन अब इस कवायद का भी क्या फायदा निकलने वाला है।