देहरादून। राजधानी में यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने के तमाम दावे आज तक शायद ही सफल हुए होंगे। तमाम चौराहों पर ट्रैफिक लाइट्स लगाकर पुलिस प्रशासन जो प्रयोग कर रहा है उससे जनता की मुसीबतें कम होने की बजाए और बढ़ रही हैं।
कुछ तिराहों और चौराहों पर तो इन लाइटों को लगाने का कोई औचित्य ही नहीं है क्योंकि यहां पर लोग ट्रैफिक लाइट देखते ही नहीं हैं या फिर लाइटें कुछ इस तरह काम कर रही हैं कि लोगों को समझ ही नहीं आ रहा है कि जाएं या रूकें। घंटाघर चौराहे पर लगे ट्रैफिक सिग्नल भी कुछ ऐसे ही प्रतीत हो रहे हैं।
यहां पर इन ट्रैफिक लाइटों की ओर बेहद कम लोग ही ध्यान देते हैं लेकिन रेड सिग्नल होने के बाद भी यातायात रूकता नहीं है क्योंकि एक साथ रेड और ग्रीन लाइटें जली रहती हैं भले ही उनकी दिशा अलग—अलग हो लेकिन फिर भी लोग असमंजस में रहते हैं कि रूकें या जाएं। अगर कोई रेड सिग्नल पर रूकता है तो पीछे से दूसरी गाड़ियों के हार्न बजने लग जाते हैं और जो यातायात नियम का पालन करना चाहता है उसे भी नियम तोड़ कर आगे बढ़ना पड़ता है। लेकिन इस चक्कर में वह यह भूल जाता है कि चौराहों पर कैमरे भी लगे हुए हैं। रेड लाइट जंप करता है तो चालान घर पहुंच जाता है। कुल मिला कर आम आदमी की जान ही सांसत में फंसती है।
चकराता रोड की ओर से आने वाले यातायात के लिए पुलिस बूथ के पास ही सिग्नल लाइट लगाई गई हैं जिसमें एक सिग्नल सीधे निकलने के लिए है तो दूसरा राइट टर्न के लिए। इस स्थान पर राइट टर्न लेने के लिए नियम ही नहीं है क्योंकि अगर राइट टर्न करके बाजार में जाना है या वापस चकराता रोड पर मुड़ना है तो इसके लिए उसे घंटाघर का चक्कर लगाकर ही आना होगा।
इसी तरह से राजपुर रोड और दर्शन लाल चौक की ओर जाने वाले यातायात के लिए भी लाइटें लगाई गई हैं लेकिन ट्रैफिक लाइट को भी दिशा दिखा रही हो लेकिन यातायात नहीं रूकता। दर्शन लाल चौक से चकराता रोड या राजपुर रोड की ओर जाने वाला यातायात भी लगातार चलता ही रहता है। तो फिर ऐेसे में इन ट्रैफिक लाइटस को लगाने का औचित्य ही क्या है। इन सिग्नल लाइटस को लगा कर इतना जरूर बताया जा रहा है कि सरकार, प्रशासन और पुलिस विभाग को शहर के यातायात की चिंता है। लेकिन यह चिंता कितनी जायज है इसका अंदाजा यहां पर कुछ देर खड़े हो कर यातायात को देख कर लगाया जा सकता है।
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