कहा जाता है कि प्यार, राजनीति और जंग में सब कुछ जायज होता है कुछ भी नाजायज नहीं। चाणक्य का यह नीति वाक्य बेवजह नहीं है इतिहास इसका साक्षी है। अभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक जनसभा में मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने वालों से सतर्क रहने की बात कही गई थी। बीते कल देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मुफ्त की रेवड़ियों पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा गया कि केंद्र सरकार इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने में क्यों हिचक रही है? खास बात यह है कि यह तो सभी मानते हैं कि वोट बटोरने के लिए दी जाने वाली रिश्वत जिसे मुफ्त की रेवड़ियों का नाम दिया जा रहा है गलत है, लेकिन सरकार के पैरोकार कहते हैं कि इस पर राजनीतिक स्तर से नियंत्रण मुश्किल है वित्त आयोग ही कुछ उपाय कर सकता है वहीं वित्त आयोग क्या कर सकता है? इसका कोई जवाब नहीं। क्या चुनाव आयोग रोक सकता है तो चुनाव आयोग भी इस मुद्दे पर यह कहकर हाथ खड़े कर देता है कि वह घोषणा पत्रों को सरकार नहीं राजनीतिक दलों के वायदे मानता है। केंद्र सरकार ही इसके लिए कानून ला सकती है। सवाल यह है कि भ्रष्टाचार की तरह ही इस मुफ्त की रेवड़ियों पर प्रतिबंध के लिए मारक कार्रवाई हो सके इसके लिए कोई भी कुछ करने को तैयार नहीं है। भले ही कुछ लोग यह मानते हो कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने इस मुफ्त की रेवड़ियो के चलन की शुरुआत की है या मुफ्त की रेवड़ियंा बांटकर राजनीति को खराब किया है लेकिन यह सच नहीं है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यह मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने का प्रचलन राजनीति का हिस्सा रहा है। हर एक छोटे से लेकर बड़े से बड़े चुनाव तक चुनाव के दौरान व्यापक स्तर पर काले धन का प्रयोग इन मुफ्त की रेवड़ियों को बांटने में किया जाता रहा है। चुनाव के दौरान व्यापक स्तर पर कैश और अवैध शराब की बरामदगी होती है यह पैसा चुनाव पूर्व वोटरों को पैसे देने से लेकर उपहार बांटने में ही खर्च किया जाता है। परोक्ष रूप से मुफ्त बिजली—मुफ्त पानी और नगद आर्थिक सहायताएं क्या मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने की श्रेणी में नहीं आता। आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार महिलाओं को जो नगद राशि उनके खातों में भेज रही है वह मुफ्त की रेवड़ियंा नहीं तो और क्या है। क्या केंद्र सरकार की सम्मान निधियों और मुफ्त का राशन मुफ्त की रेवड़ियंा नहीं है। उत्तराखंड सरकार जो मुफ्त गैस सिलेंडर दे रही है वह क्या है? सरकार ने कोरोना काल में दिए जाने वाले मुफ्त राशन की अवधि 2024 तक क्यों बढ़ाई गई है क्या यह मुफ्त की रेवड़ियंा नहीं बांटी जा रही है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियंा बांटते रहे हैं और बांट रहे हैं क्योंकि वोट पाने का यह सबसे मुफीद जरिया बन चुका है। फिर भला ऐसे में किसी सरकार या राजनीतिक दल से यह उम्मीद सुप्रीम कोर्ट कैसे कर सकता है वह इसे रोकने के लिए सशक्त कानून बना सकते हैं।