राजनीतिक अपराधीकरण का मुद्दा

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भले ही देश के संविधान निर्माताओं द्वारा जनप्रतिनिधियों के लिए भी तमाम नियम कानूनों की व्यवस्था की गई हो लेकिन इन कानूनों में अगर थोड़ा भी दमखम होता तो आज देश की संसद और विधानसभाओं में आधे से अधिक संख्या में दागी और अपराधी किस्म के लोग न बैठे होते। इसे आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि जनप्रतिनिधियों के लिए जो कानून बनाए गए है उनमें इतने छेद हैं कि आसानी से कोई भी भ्रष्ट और अपराधी किस्म का व्यक्ति निर्वाचन आयोग और जिला प्रशासन की आंखों में धूल झोंक कर चुनाव के लिए अपना आवेदन पत्र भर सकता है बल्कि चुनाव लड़कर और जीतकर संसद और विधानसभाओं में उन लोगों के बीच जाकर बैठ सकता है जिन्हें देश और समाज के लिए कानून बनाने का अधिकार संविधान देता है। नामांकन पत्र भरने के समय इन जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने बारे में तमाम उन जानकारियों को छिपा लेना जो उन्हें अपने शपथ पत्र में देना होता है, से लेकर गलत जानकारियां देने तक तमाम मामले आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं। खास बात यह है कि देश का कोई भी राजनीतिक दल या सरकार इससे अछूती नहीं है। देश की संसद में अभी भी 225 से अधिक दागी सांसद बैठे हैं अभी बीते दिनों किस दल के कितने दागी संसद में हैं इसकी सूची खबरों में छपी थी। अपराधियों को विधायक व सांसद बनने से कैसे रोका जाए इस काम में केंद्र सरकार जिसे कानून बनाने का अधिकार है तथा निर्वाचन आयोग जिसे किसी भी अपराधी प्रत्याशी को अयोग्य साबित कर चुनाव लड़ने से रोके जाने का अधिकार है तथा न्यायपालिका जिसे कानून मानने के लिए सभी नागरिकों को बाध्य करने और सजा देने का अधिकार है कोई भी इन दागी व भ्रष्ट लोगों को संसद और राज्यों की विधान सभाओं तक जाने से नहीं रोक पाया है। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा गया था कि जब एक लोक सेवक को उसके भ्रष्ट आचरण या आरोग्य पाए जाने पर सेवाओं से रोका जा सकता है तो सांसद और विधायकों पर यह नियम लागू क्यों नहीं हो सकता है। सरकार द्वारा इसके जवाब में दाखिल अपने हलफनामे में कहा गया है कि इस पर फैसला करने का अधिकार संसद को है कि ऐसे लोग चुनाव लड़ सकते हैं या नहीं कोर्ट को नहीं है। केंद्र सरकार का कहना भी ठीक ही तो है कि कानून बनाने का अधिकार संसद को ही है अगर सरकार नहीं चाहती है कि अपराधी में और भ्रष्ट नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाए तो कोर्ट भला उन्हें कैसे रोक सकता है। सवाल यह है कि जब भ्रष्ट और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को ही कानून बनाना है तो वह कोई भी ऐसा कानून भला कैसे बना सकते हैं जो उन्हें ही राजनीति के अखाड़े से बाहर कर दे। ऐसी स्थिति में इस मामले ने अब देश की सर्वाेच्च अदालत और सरकार को ही आमने—सामने लाकर खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ में यह मामला विचाराधीन है उसका कहना है कि जनप्रतिनिधि कानूनों की समीक्षा जरूर करेंगे। देश की राजनीति के अपराधीकरण का यह सवाल कोई नया सवाल भले ही न हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है की राजनीति में भ्रष्ट और अपराधियों को आने से रोकने या उन्हें बाहर किये बिना राजनीति में सुचिता की कोई संभावना तलाश नहीं की जा सकती है। यह कैसे संभव होगा इस पर संसद को सोचने की जरूरत है।

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