अभी और कितने घोटाले?

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यूं तो उत्तराखंड राज्य की राजनीति की नींव ही भ्रष्टाचार और घोटालों पर रखी गई थी लेकिन क्या इन घोटालों का सिलसिला कभी रुकेगा भी यह सवाल आज भी सबसे अहम बना हुआ है। इन दिनों राज्य में निकाय चुनाव का प्रचार अभियान तेजी से चल रहा है। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के नेता अपनी ही पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचारों को लेकर एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में लगे हुए हैं। कोटद्वार और पिथौरागढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बागी नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से शिक्षकों के ट्रांसफर के लिए दो—दो लाख रुपए लिए जाने और खनन के पट्टे लेने के लिए रिश्वत देने के खुलासे किये जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर अपने पुराने दौर की तरफ जा रही है जब राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा, कांग्रेस के नेता एक दूसरे के भ्रष्टाचार की लिस्ट लेकर घूमते थे और तेरे शासनकाल में 56 और तेरे शासनकाल में 108 घोटालों पर बहस होती थी मतदान केंद्रो के आस—पास बड़े—बड़े र्होडिंग्स लगाकर लोगों को बताया जाता था कि तेरे घोटाले मेरे घोटाले से कम। यहां यह लिखा जाना बहुत जरूरी है कि उत्तराखंड में सरकार भले ही किसी समय में किसी की भी रही हो घोटालों का दौर न थमा है और न थमने वाला है। यह बात अलग है कि संासद त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसे नेता मुख्यमंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम न लगा पाने और लोकायुक्त का गठन न कर पाने पर इस तरह के बयान देते रहे हो कि राज्य में जब भ्रष्टाचार नहीं रहा तो फिर लोकायुक्त की जरूरत ही क्या है। इन दिनों हरिद्वार के मेडिकल कॉलेज को पीपी मोड पर दिए जाने और प्रदेश में एक और महा घोटाला किये जाने की बात चर्चाओं के केंद्र में है। सरकार ने कितने ही प्रयासों से हरिद्वार में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की हो और इसके निर्माण कार्य में सरकारी खजाने से 600 करोड़ खर्च किया हो लेकिन 700 करोड़ की जिस जमीन पर इस कॉलेज को बनाया गया है उसे अब शारदा ग्रुप को ढाई करोड़ सालाना पर सौंपने को महा घोटाला बताया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज में 100 मेडिकल की एमबीबीएस सीटें स्वीकृत है। जब करोड़ों रुपए में एक छात्र को दाखिले के लिए खर्च करना पड़ता है तो ढाई करोड़ सालाना की रकम जो शारदा ग्रुप सरकार को इसके एवज में देगा क्या मायने रखता है। 1300 करोड़ से अधिक की इस संपदा को सरकार निजी हाथों में क्यों दे रही है ऐसी सरकार की क्या मजबूरी है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। कॉलेज में एमबीबीएस करने वाले छात्रों के पहले ही ग्रुप को जब इसकी जानकारी मिली तो उनमें भारी आक्रोश है क्योंकि उन्होंने सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया था अगर उन्हे डिग्री निजी संस्थान देगा तो इसका प्रभाव उनके करियर पर पड़ना ही है। यही नहीं इसे लेकर कांग्रेस नेता गणेश गोदियाल तो खुली चुनौती दे चुके हैं कि वह ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री पर तो आरोप लग ही रहे हैं साथ ही वर्तमान सरकार भी सवालों के घेरे में है जो यह दावा करती रही है कि उसने नकल माफिया को दफन कर दिया। 100 से अधिक भ्रष्टाचारियों को जेल भेजा जा चुका है। सरकार इस मामले में चुप क्यों है यही एक अहम सवाल है।

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