अभी 2 दिन पहले देश की सर्वाेच्च अदालत ने राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए की जाने वाली मुफ्त की योजनाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार के पास जजों को देने के लिए वेतन—भत्ते और पेंशन के लिए तो धन है नहीं लेकिन मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने के लिए धन कहां से आ रहा है? निश्चित तौर पर देश में जिस तेजी से मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति का प्रचलन बढ़ा है वह चौंकाने वाला है। बात अब मुफ्त की बिजली या मुफ्त पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली जन सुविधाओं तक सीमित नहीं रही है। अब लाभार्थियों के बैंक खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर तक मामला जा पहुंचा है। अभी हाल में हुए कुछ राज्यों के चुनाव के दौरान लाडली बहना और लाडली दीदी जैसी योजनाओं के तहत महिलाओं को कहीं 11 सौ तो कहीं 2100 रुपए नगद उनके खातों में डालने की शुरुआत हो चुकी है। पीएम मोदी भले ही अपनी चुनावी जनसभाओं में मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने वालों से सतर्क रहने की नसीहतें देते रहे हो लेकिन खास बात यह है कि सत्ता में होने के कारण मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में उनकी पार्टी ही सबसे अव्वल नंबर पर है। पीएम खुद बड़े गर्व के साथ यह बताते हैं कि वह देश के गरीबों को जिनकी संख्या 81 करोड़ से भी अधिक है हर महीने मुक्त राशन मोहिया करा रहे हैं। देश के करोड़ों किसानों को किसान सम्मान निधि के नाम पर 500 रूपये महीने उनके खाते में भेज रहे हैं। बात उज्ज्वला योजना की हो या फिर बेघर को पक्के मकान दिए जाने की। लड़कियों की शादियों के लिए अनुदान की हो या विधवा और बेसहारा महिलाओं को पेंशन देने की। देश में आने वाले दिनों में देश के लोगों को सब कुछ बिना कुछ किये ही मुफ्त में मिला करेगा अगर यह मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति इस रफ्तार से जारी रही तो। खास बात यह है कि यह मुफ्त की रेवड़िया जनता को भी खूब भा रही है और उसकी मानसिकता भी यह बन चुकी है कि वह अपना वोट उसी को दे रहे हैं जो उसे सबसे ज्यादा दे रहा है। इन दिनों दिल्ली विधानसभा के चुनाव गतिमान है केजरीवाल जिन्होंने दिल्ली की जनता को मुक्त बिजली पानी देकर अपनी सियासी जमीन तैयार की थी अब वह भी हैरान परेशान है कि जब कांग्रेस व भाजपा जैसे विरोधी दल मुफ्त की रेवड़ियों की रेलगाड़ी लेकर निकल पड़े हैं तो वह क्या करें। हर घर को रोजगार हर बेरोजगार को 8—10 हजार हर माह, बहनो को हर माह 2500 रूपये मुक्त यात्रा, 25 लाख तक का मुफ्त इलाज और न जाने क्या—क्या? सवाल यह है कि मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने वाले इन राजनीतिक दलों के पास पैसा कहां से आएगा आज देश पर 200 लाख करोड़ से अधिक का कर्जा है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के अब पसीने छूट रहे हैं कि इन घोषणाओं को कैसे पूरा करें? लेकिन कर्ज लो और घी पियो की नीतियों पर चलने वाली यह राजनीति देश के लोगों को नकारा निकम्मा और भिखारी बनाने पर आमादा है। न मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने की राजनीति करने वालों को और न मुफ्त की रेवड़ियंा खाने वालों को यह समझ में आ रहा है कि वह क्या कर रहे हैं तथा इसके दूरगामी परिणाम क्या होने वाले हैं बस मुफ्त के माल की लूट मची है।