इस कांग्रेस का क्या होगा?

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भले ही उत्तराखंड कांग्रेस के नेता सूबे में पार्टी की दुर्दशा के लिए किसी को भी जिम्मेदार ठहराते रहे हो लेकिन इस खराब हालत के लिए वह खुद जिम्मेदार हैं। राज्य में हो रहे निकाय चुनाव के दौरान कांग्रेस में जिस तरह का घमासान मचा हुआ है वैसे हालात में कोई भी दल या पार्टी अपनी जीत और अच्छे परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकती है। कांग्रेस का कल्चर रहा है कि पहले अपने बड़े नेताओं की शार्गिदी करो उन्हें चुनाव जिताने के लिए काम करो पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता बनकर पार्टी का झंडा और डंडा लेकर उनके साथ चलते रहो लेकिन अपने लिए अगर कुछ मांगोगे तो उस समय वह आपको दरकिनार कर देंगे। पार्टी के नेताओं की यह मानसिकता हो कि वह अपने समकक्ष किसी को भी खड़ा नहीं होने देंगे तो ऐसी स्थिति कोई भी पार्टी सिर्फ नेताओं की पार्टी ही बनकर रह जाती है कार्यकर्ता धीरे—धीरे ऐसी पार्टी से किनारा कर लेते हैं। प्रदेश कांग्रेस में मथुरादत्त जोशी का नाम सभी जानते हैं अभी निकाय चुनाव के दौरान उन्होंने अपने 48 साल की सेवाओं का हवाला देते हुए कहा कि अगर कांग्रेस उन्हें पूरी जिंदगी की सेवाओं के बदले एक टिकट भी नहीं दे सकती तो वह ऐसी पार्टी में रहकर क्या करेंगे। जोशी अपनी पत्नी के लिए पिथौरागढ़ से मेयर का टिकट मांग रहे थे लेकिन कांग्रेस ने यहां से अंजू लूंगी को अपना प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि यह सब कांग्रेस में ही संभव है कि कोई नेता पार्टी के खिलाफ खड़ा हो और पार्टी उसके खिलाफ कुछ भी कार्रवाई करने का साहस न जुटा सके। पिथौरागढ़ से विधायक मयूख महर इसके एक उदाहरण है। मयूख अपनी भतीजी के लिए मेयर का टिकट चाहते थे नहीं मिला तो अब बगावत का खुला ऐलान करते हुए निर्दलीय के रूप में न सिर्फ अपनी भतीजी को चुनाव में उतार दिया है बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी लूंगी के खिलाफ काम करने का ऐलान कर दिया है। मयूख कांग्रेस की जगह अगर भाजपा के नेता होते तो शायद उन्हें अब तक पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया होता। कांग्रेस उनके खिलाफ कुछ करती है या नहीं यह समय ही बताएगा। कांग्रेस नेताओं द्वारा पांच लाख रुपए में पार्षद के टिकट बांटे जाने का वीडियो वायरल होने तथा टिकट तय होने के बाद भी पार्टी सिंबल न दिए जाने को लेेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मुख्यालय में धरना व हंगामा किया जाना पार्टी के आंतरिक हालात बयां करने के लिए काफी है। पूर्व सीएम हरीश रावत का अपने समर्थकों को टिकट न दिलवाने पर माफी मांगना साफ तौर पर यही दर्शाता है कि हरीश का समय अब समाप्त हो चुका है यही माफी इसकी स्वीकारोक्ति है। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा द्वारा मथुरादत्त जोशी को भले ही फिलहाल मना लिया हो लेकिन उन्होंने अल्मोड़ा से एक अन्य नेता बिटृू को लेकर इस तरह की कोई पहल नहीं की है माना जा रहा है कि वर्तमान अध्यक्ष करन माहरा पार्टी पर बोझ हो चुके उम्र दराज नेताओं को साइड लाइन करने का मन बना चुके हैं तथा उनके समर्थकों को भी तवज्जो नहीं दे रहे हैं। टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस में जिस तरह की बगावत जारी है और उसे रोकने के भी प्रयास किये जा रहे हैं उसका चुनाव पर प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा है। जबकि इसके विपरीत भाजपा ने बगावत की स्थिति पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया है। चुनाव के नतीजे जब आएंगे तब आएंगे लेकिन कांग्रेस के अंदर बड़े बदलाव की जरूरत है जब तक यह नहीं होगा कांग्रेस का इस संकट से उबर पाना संभव नहीं है। सवाल यह है कि क्या करन माहरा इस बदलाव को लाने में सफल हो पाएंगे।

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