लोकतंत्र में चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होतें। चुनाव अगर नगर निकाय और पंचायतों के होतो फिर बात ही क्या है। उत्तराखण्ड में इन दिनों निकाय चुनावों की प्रक्रिया गतिमान है भले ही राज्य में बारिश और बर्फबारी ने शीत के प्रकोप को चरम पर पहुंचा दिया हो लेकिन निकाय चुनावों की सरगर्मी अपने उफान पर है निकाय चुनावों के तय कार्यक्रम के अनुसार नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। तथा नामांकन पत्रों की जांच का काम तथा नाम वापसी का काम भी निपटने वाला है। निर्वाचन आयोग द्वारा दी गयी जानकारी के आधार पर राज्य के 11 नगर निगमों के लिए 90 उम्मीदवारों ने महापौर पद के लिए अपने पर्चे भरे है। तथा नगर पालिका परिषद अध्यक्ष के लिए 442 उम्मीदवार मैदान में है। वहीं पार्षद पदों के लिए 3995 उम्मीदवारों ने नामांकन कराया है। बात अगर देहरादून नगर निगम की करें तो यहां महापौर पद के लिए 6 निर्दलीय प्रत्याशियों सहित कुल 10 लोग मैदान में है। यहंा भाजपा व कांग्रेस दोनो की प्रमुख दलों द्वारा छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने वाले अपने पहाड़ी मूल के प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया गया है। भाजपा ने सौरभ थपलियाल तो कांग्रेस ने वीरेन्द्र पोखरियाल को टिकट दिया है। एक समय में दून में 70 वार्ड थे जो अब बढ़कर 100 हो गये है। भाजपा व कांग्रेस दोनो की दलों द्वारा भले ही टिकटों के वितरण में कितनी भी सर्तकता बरती गयी हो लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनो की दलों में टिकटों को लेकर भारी असंतोष देखा जा रहा है। छोटे चुनावों में जहंा प्रत्याशियों की सीमित संख्या के सापेक्ष टिकट के दावेदारों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी पार्टी अपने सभी कार्यकर्ताओं को संतुष्ट नहीं कर सकती है। यही कारण है कि इन चुनावों मं अंसतोष भी अपने चरम पर रहता है। बात भाजपा की हो या फिर कांग्रेस की पौड़ी से लेकर पिथौरागढ़ और चमोली से लेकर चम्पावत और अल्मोड़ा तक यह अंसतोष साफ देखा जा सकता है। टिकट वितरण की जिम्मेदारी संभालने वाले नेताओं से दावेदारों का सीधा संवाद बना रहता है और वह सूची जारी होने तक यह उम्मीद लगाये रहते है कि उनका टिकट तो पक्का है लेकिन सूची आती है तो टिकट किसी और को मिल जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो सार्वजनिक रूप से माफी मांगते दिखे कि उन्होने जिन लोगों को टिकट दिलाने का वायदा किया था वह उन्हे टिकट नहीं दिला सके। इसके लिए क्षमा प्रार्थी है। वहीं कांग्रेस में पैसा लेकर टिकट बांटे जाने का एक वीडियों वायरल होने पर खूब हंगामा भी हुआ। यह भी कोई नई बात नहीं है इस तरह के लोग सभी पार्टियों में मौजूद है जो ऐसा काम भी करते है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मथुरा दत्त जोशी तो उनकी अपनी पत्नी को टिकट न मिलने से इतने नाराज दिखे कि अपने नेताओं पर आरोपों की बौछार कर डाली। ख्ौर यह सब लोकतंत्र के पर्व का हिस्सा है। भाजपा जो पिछले कई चुनाव से निकायों मे अपना दबदबा बनाये हुए है उसके सामने इस चुनाव में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है वहीं कांग्रेस के सामने अपनी खोई जमीन को पुनः हासिल करने की। देखना होगा कि चुनावी नतीजे किस पक्ष में रहते है। चुनाव से पूर्व जीत के दावे तो सभी करते ही है।





