गले पड़ी मुसीबत

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केंद्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद भले ही भाजपा नेताओं ने 10 साल तक देश का शासन चलाने में थोड़ा सा धैर्य व संयम बनाए रखा हो लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जाते—जाते उन्होंने अति उत्साह की उन सारी प्रकाष्ठाओं को लांघ दिया जो उसके अंतरनिहित था। सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की बात करने वाले नेता जब खुलकर विपक्ष विहीन संसद और अबकी बार 400 पार का नारा लगाने के साथ संविधान बदलने तथा हिंदू राष्ट्र के एजेंड़े को खुलकर सामने ले आए तो शायद तब उनकी सोच यही रही होगी कि अब उन्हें कुछ भी करने से कोई नहीं रोक पायेगा? और उन्होंने प्रधानमंत्री को एक महामानव और अवतार के रूप में इस तरह प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया कि देश में मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है। बस यही से बाजी पलटना शुरू हो गई। 240 के अंक पर सिमटने के बाद इन नेताओं को जन गण मन की बात समझ आ सकी लेकिन वह अपने दंभ के साथ कोई समझौता करना तो दूर उसके परिणाम समझने को भी तैयार नहीं दिखे। वह कभी महात्मा गांधी तो कभी पंडित नेहरू तो कभी डा. भीमराव अंबेडकर को बौना साबित करने की कोशिशोंं में जुटे रहे। खास बात यह है कि यह नेता अभी उसे सच को देखने को तैयार नहीं है जो गैर राजनीतिक लोगों को भी साफ—साफ नजर आने लगा है। डॉ आंबेडकर पर की गई गृहमंत्री की आपत्तिजनक टिप्पणी का इन नेताओं व भाजपा की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है? इसका लेश मात्र भी अंदाजा उन्हें नहीं है। यह मुद्दा अब इतना अधिक गर्म हो चुका है कि यह उन्हें कभी भी केंद्रीय सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू भले ही इस मुद्दे पर कोई खली प्रतिक्रिया व्यक्त न कर रहे हो लेकिन इन दोनों की राजनीतिक ताकत एससी—एसटी और पिछड़ों का वोट बैंक ही है जिसके दम पर उनका राजनीतिक वजूद टिका है। यह दोनों ही नेता इसे लेकर न सिर्फ नाराज है अपितु एनडीए सरकार से समर्थन वापसी तक पर मंथन कर रहे हैं जो कभी भी संभव है। दूसरी ओर अगर भाजपा नेताओं ने यह सोच रखा है कि कांग्रेस अब इस मुद्दे को आसानी से छोड़ सकती है तो उनकी यह सोच एकदम गलत है। कर्नाटक के बेलभावी में कांग्रेस के सम्मेलन में यह तय हो चुका है कि कांग्रेस फरवरी 2025 से लेकर नवंबर 2025 तक 9 महीने देश में जब कोई बड़ा चुनाव नहीं होगा संविधान बचाओ पदयात्रा का आयोजन करने जा रही है कांग्रेस गांधी के सत्याग्रह की राह पर चल पड़ी है। इस पदयात्रा को जय भीम जय बापू और जय संविधान के नारे के साथ शुरू किया जाएगा। अब तक अकेले राहुल सामाजिक न्याय के लिए अकेले पदयात्रा पर निकलते थे लेकिन अब पूरी कांग्रेस इस यात्रा का हिस्सा होगी। प्रियंका व राहुल के नेतृत्व में होने वाली यात्रा भाजपा पर राजनीतिक दृष्टिकोण से कितनी भारी पड़ सकती है देश के दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटो का मतलब भाजपा अच्छे से जानती है जिसे अब रोक पाना उसके लिए कितना मुश्किल होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। खास बात यह है कि भाजपा नेताओं द्वारा एक के बाद एक ऐसे काम किये जा रहे हैं कि उनका हर दांव उल्टा ही पढ़ रहा है।

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