सचिवालय में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी आर. मीनाक्षी सुंदरम और जनप्रतिनिधि बॉबी पवंार के बीच भले ही किसी भी मुद्दे को लेकर तकरार हुई हो लेकिन अब इस विवाद ने इतना तूल पकड़ लिया है कि सूबे की ब्यूरोक्रेसी और नेताओं के बीच लामबंदी शुरू हो गई है। जहां तक बात अधिकारियों की है उसके बारे में सभी जानते हैं कि उनकी कार्य श्ौली कैसी है। अधिकारियों की मनमानी और मंत्री तथा विधायकों तक की बात न सुनने या फिर उन्हें नजर अंदाज करने के आरोप भी लंबे समय से लगाए जाते रहते हैं। जहां तक बात भ्रष्टाचार की है तो यह ताली अकेले नेताओं या अकेले अधिकारियों के हाथों से नहीं बजाई जा सकती है। नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ से अब तक बेरोके टोक भ्रष्टाचार की गंगा राज्य में बहती रही है। अब अगर राजनीति में बॉबी पंवार जैसे नेताओं का अवतरण हो रहा है और वह यह कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी। तो यह सूबे की राजनीति में एक नया पन्ना जोड़ने जैसा है। पंवार इसमें कितने सफल हो पाते हैं यह तो समय ही बताएगा। एक महत्वपूर्ण सवाल इस पूरे घटनाक्रम का यह भी है कि राज्य और देश की राजनीति में अधिकारियों के सेवा विस्तार की बीमारी की जड़ में कौन है। बॉबी पंवार के अनुसार वह सचिवालय यूपीसीएल के एमडी अनिल कुमार यादव को मिले सेवा विस्तार की जानकारी लेने गए थे। सरकार में बैठे लोगों द्वारा कैसे अपने रुचिकर अधिकारियों को अपने आस—पास रखना ही पसंद नहीं होता है बल्कि उनका सेवाकाल पूरा होने के बाद भी उन्हें सिर्फ सेवा विस्तार ही नहीं दिया जाता है अपितु महत्वपूर्ण पदों पर उनकी तैनाती किया जाना भी शामिल है। भले ही इन अधिकारियों के ऊपर कितने भी बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगे हो। इस विवाद के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बॉबी पंवार भ्रष्टाचारियों और मनमानी करने वाले अधिकारियों का सफाया कर पाएंगे? एक दूसरा सवाल यह है कि सूबे के तमाम अधिकारी और कर्मचारी संगठन बॉबी पवार जैसे नेताओं को कतई भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने पंवार के खिलाफ न सिर्फ एफआईआर दर्ज कराई है बल्कि कार्य बहिष्कार कर अपनी नाराजगी उस हद तक जताई जा चुकी है कि अगर सरकार व मुख्यमंत्री इस मामले में कोई दखल नहीं करते हैं तो यह अधिकारी इस मुद्दे को लेकर वह सब करने पर विवश होंगे जो नहीं किया जाना चाहिए। विकास तभी संभव है जब सरकार और अधिकारियों के बीच एक संतुलित रिश्ते बने रहे। क्योंकि काम तो अधिकारियों को ही करना है अधिकारियों के बिना तो वह सारा कार्य नहीं कर सकते हैं जिसके लिए अधिकारियों की एक फौज रखी जाती है और इस पर भारी भरकम खर्च भी किया जाता है। लेकिन अधिकारियों और नेताओं के बीच जिस तरह की जूतम पैजार हो रही है यह कुर्ता घसीटन दोनों की ही छवि को खराब करने वाले हैं। मुख्यमंत्री धामी इसका क्या कुछ समाधान निकालते हैं। वह अधिकारियों की आपत्तियों को तवज्जो देते हैं या फिर नेताओं के पाले में खड़े होते हैं यह उनके लिए एक कठिन समस्या है। जहा तक बात व्यवस्थागत किसी सकारात्मक सुधार की है तो यह दिन में चांद दिखने जैसा ही है।