दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 5 महीने जेल से ही दिल्ली की सत्ता चलाई, तमाम दबावों और चर्चाओं के बाद भी अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया लेकिन जेल से बेल पर बाहर आते ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करके सभी को चौंका दिया है। उनके इस फैसले से भाजपा खेमे में खासी खलबली है। शायद भाजपा के नेता यह सोच रहे होंगे कि केजरीवाल बाहर आते ही हरियाणा के विधानसभा चुनावों में व्यस्त हो जाएंगे लेकिन उन्होंने तो दिल्ली में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के साथ ही चुनाव कराने की मांग कर डाली। यही नहीं अपनी मांग भी इस मजबूत दावे के साथ की कि वह जब तक जनता की अदालत से इस मामले में क्लीन चिट नहीं ले लेंगे तब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोबारा नहीं बैठेंगे। बीते 10 सालों से दिल्ली की कुर्सी उनसे छीनने की जो छटपटाहट भाजपा के अंदर देखी जा रही है उस भाजपा को एक बार फिर केजरीवाल ने चुनौती दे डाली है। उन्होंने दिल्ली की जनता से भी साफ कहा है कि अगर आपको लगता है कि अरविंद बेईमान है तो वह उन्हें वोट न दे। केजरीवाल ने आज अपने इस्तीफा की घोषणा के साथ यह भी कहा है कि उन्हें जेल में इसलिए नहीं डाला गया कि उन्होंने कोई घपला घोटाला किया है बल्कि इसलिए डाला गया है क्योंकि भाजपा आम आदमी पार्टी को भी अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह तोड़ना चाहती थी लेकिन वह अपने इस मंसूबे में सफल नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि उन्होंने जेल से सरकार चला कर यह साबित कर दिया है कि अब किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को जेल भेजने के बाद इस्तीफा देने की जरूरत नहीं जैसे कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने दे दिया था। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि जेल से सरकार क्यों नहीं चलाई जा सकती है। अरविंद केजरीवाल का यह बयान विपक्षी एकता को दृढ़ता प्रदान करने वाला है। उन्होंने एक कुशल राजनेता की तरह अपना इस्तीफा देने के लिए 17 सितंबर यानी प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन वाला दिन चुना है। जब बीजेपी पीएम का जन्मदिन मनाने के लिए कई भव्य आयोजन करने वाली है उस दिन वह अपना इस्तीफा दिवस धूमधाम से मनाने जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी इस दिन कई कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। अरविंद केजरीवाल को पता है कि वह अब इस लड़ाई को जीत चुके हैं। क्योंकि अब ईडी या सीबीआई उन्हें कम से कम इस मामले में दोबारा गिरफ्तार नहीं कर सकती है। रही इस केस पर फैसला आने की बात तो अभी तो उन पर आरोप तय करने व चार्जशीट तैयार करने में लंबा समय लग जाएगा फैसला आने में 10 साल लगेंगे या 20 साल पता नहीं तब तक गंगा जमुना में न जाने कितना पानी बह जाएगा? फिलहाल लोहा गरम है और चोट करने का यही समय है। यही कारण है की जेल से आते ही उन्होंने केंद्रीय सत्ता पर जबरदस्त वार किया है। वैसे भी अगले साल फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने ही थे अगर दो—तीन महीने पहले भी हो जाते हैं तो उसका क्या कुछ फर्क पड़ने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के साथ उन पर कई पाबंदियां लगा रखी हैं। सीएम दफ्तर व सचिवालय नहीं जा सकते हैं किसी फाइल पर साइन भी तब तक नहीं कर सकते जब तक राज्यपाल जरूरी न समझे। अपना पद छोड़कर अगर किसी को भी सीएम की कुर्सी पर बैठा भी रहे हैं तब भी परोक्ष तौर पर सभी फैसले उनके अनुसार ही होंगे। देखना यह है कि अब दिल्ली के सीएम की यह कुर्सी किसे सौंपी जाती है। खैर अपने इस एक तीर से केजरीवाल ने कई निशाने साधे हैं। जब जनता यह मान रही है कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार कर जेल में डाला गया तो उन्हें इसका चुनाव में भी लाभ मिलना तय है।