नहीं चलेगी बुलडोजर वाली राजनीति

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भले ही देश में बुलडोजर वाली राजनीति का चलन कितना भी पुराना क्यों न रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में योगीराज आने के बाद देश भर में खास तौर पर भाजपा शासित राज्यों में जिस तरह से बुलडोजर वाली राजनीति को हवा मिली है वह अपने आप में हैरान करने वाली ही है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लोग अब बुलडोजर बाबा के नाम से पुकारते हैं। प्रशासन के इस बुलडोजर के एक्शन के मामले में बीते कल देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा साफ तौर पर यह टिप्पणी की गई है कि कोई भी सरकार किसी भी आपराधिक मामले के दोषी का घर बुलडोजर से नहीं ढहा सकती है। आमतौर पर आम आदमी को यह समझाया जाता है कि वह कानून को अपने हाथों में न ले। किसी भी दोषी को सजा देने का काम न्यायपालिका का है। लेकिन जब शासन प्रशासन में बैठे लोग समाज में भय और सत्ता की हनक कायम करने के लिए कानून को हाथों में लें तो उसे भला उचित कैसे ठहराया जा सकता है। आपराधिक मामलों को रोकने या अपराधियों में खौफ पैदा करने के लिए जिस तरह से किसी भी व्यक्ति के घर मकान और संस्थानों पर प्रशासन द्वारा अपराध सिद्ध होने से पूर्व ही बुलडोजर चलाया जाता रहा है उसे किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता है। कल सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने साफ कर दिया है कि वह सभी राज्यों को यह दिशा निर्देश जारी करेंगे। सरकार की तरफ से अदालत में पेश की गई इस दलील से भी कोर्ट सहमत नहीं दिखा कि प्रशासन द्वारा अवैध रूप से अतिक्रमण कर किए गए भवनों पर वैधानिक रूप से इस तरह की कार्यवाहियां की गई है। सवाल यह है कि प्रशासन को किसी भी अपराधी या आरोपी की यह अवैध संपत्तियां पहले क्यों नजर नहीं आती हैं। एक अन्य सवाल यह भी है कि इस बुलडोजर की कार्यवाही का शिकार अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोग ही क्यों होते हैं। राजस्थान में एक स्कूल में झगड़े के आरोपी लड़के के पिता के घर पर बुलडोजर चलवा दिया जाता है। दरअसल इस बुलडोजर की कार्रवाई की राजनीति के पीछे समाज के एक खास वर्ग के अंदर खौफ भरने का उद्देश्य ही रहा है। खास बात यह है कि यह बुलडोजर सत्ता पक्ष के किसी आरोपी के घर पर नहीं चलाया जाता है। यूपी की सत्ता संभालने के बाद जब योगी ने बुलडोजर का यह अभिनव प्रयोग शुरू किया तो खुद पीएम मोदी ने भी उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि वह बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। मीडिया भी उनके इस काम की तारीफ के पुल बांधता रहा है यही कारण है कि इस बुलडोजर की संस्कृति के तमाम भाजपा शासित राज्यों में तेजी से अपनाया जाने लगा। किसी भी व्यक्ति ने कोई अपराध किया भी है या नहीं किया है इसका फैसला अदालतें जब करेगी तब करेगी लेकिन प्रशासन आरोपी का घर मकान तोड़ने के लिए बुलडोजर लेकर पहले ही पहुंच जाता है। जहां तक वैध और अवैध निर्माण की बात है तो अगर शहर दर शहर इसकी पैमाइश की जाए तो हर एक शहर का आधा हिस्सा अतिक्रमण की जद में आ जाएगा। बात अगर दून की की जाए तो रिस्पना व बिंदाल नदियों के प्रभाव वाले क्षेत्र और जंगलात की जमीन पर आधा शहर बसा है। प्रशासन अगर अतिक्रमण के नाम पर बुलडोजर चलाता है तो उसे आधे दूर पर बुलडोजर चला देना चाहिए। बुलडोजर की कार्यवाही अगर किसी भी सत्ताधारी दल द्वारा अपने निहित राजनीतिक स्वार्थ और उद्देश्यों से की जाती है तो इस पर प्रतिबंध लगाया जाना जरूरी है क्योंकि घर बनाने में एक आम आदमी की पूरी उम्र खप जाती है।

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