बीते दस सालों से देश की राजनीति में जो अजब—गजब खेला चल रहा है। उसे समझ पाना किसी के लिए भी आसान काम नहीं रहा है। राज्यों में चुनी हुई सरकारों को गिराने और अपनी सरकार बनाने का खेल तमाशा देश के लोग देखते आये है। भाजपा के नेताओं द्वारा किये जाने वाले उस प्रचार से भी हम सभी वाकिफ है जिसमें कहा जाता रहा है कि भाजपा की नीतियों और मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व से प्रभावित होकर तमाम दलों के नेता अब भाजपा में आ रहे है। बीते दस सालोेंं में कुल 372 सांसदों और विधायकों ने अन्य दलों को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए है अगर अन्य नेता और कार्यकर्ताओं को जो इन सांसदो और विधायकों के साथ भाजपा का हिस्सा बन चुके है को जोड़ दिया जाये तो यह संख्या कई हजार तक पहुंच जाती है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब इसकी हकीकत सभी दलों और नेताओं की समझ में आ चुकी है कि इसके पीछे क्या खेला था? दूसरे दलों से भाजपा में आये यह नेता जहंा भाजपा के अन्दर बगावत का कारण बन रहे है जो भाजपा के लिए बड़ी समस्या बन चुका है वहीं इन नेताओ का भाजपा से मोह भंग हो जाने के कारण वह अपनी वापसी का रास्ता ढूंढ रहे है या फिर पछताते दिख रहे है। अपने तीसरे टर्म में भले ही एनडीए की सरकार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे अधिक समय मुख्य रहने व फिर प्रधानमंत्री बनने का इतिहास रच दिया हो लेकिन पहली बार गठबन्धन की सरकार बनाकर जिसके पास अब लोकसभा में अकेले के दम पर बहुमत है ही नहीं वह जेडीयू और टीडीपी की बैसाखियों पर टिकी हुई है राज्यसभा में भी बहुमत के लिए जद्दोजहद कर रही है। इस कमजोरी के कारण अब तक सरकार को अपने चार फैसलों पर यू टर्न लेना पड़ा है तथा कोई भी कानून पास कराना अब उसके लिए आसान नहीं रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए भाजपा अब केन्द्रीय सत्ता में तोड़फोड़ के दम पर अपने अकेले के बूते पर क्या 272 के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना चाहती है। राजनीति में चर्चा गरम है कि भाजपा ने आप्रेशन लोटस शुरू कर दिया है। रामविलास पासवान की पार्टी के 5 सांसदों में से तीन सांसद भाजपा के सम्पर्क में है इस पर चिराग पासवान का कहना है कि काठ की हांडी सिर्फ एक बार ही चढ़ती है और वह चढ़ चुकी है। उधर नीतीश कुमार की जेडीयू के भी नौ सांसदों से भाजपा के सम्पर्क साधने की बात चर्चा में है। इस बीच टीडीएस नेता चन्द्र बाबू नायडू ने भाजपा से भी आगे निकल कर वाईएसआर को दो सांसदों (राज्यसभा) को अपने पाले में खींच लिया है। कहने का आशय है कि खेला तो शुरू हो चुका है। लेकिन यह खेला थोड़ा आगे तक जायेगा। जिन चार राज्यों में अभी चुनाव होने है और बिहार जहंा 2025 के शुरू में चुनाव होगा इन पांच राज्यों के नतीजे केन्द्र की वर्तमान सरकार का भविष्य तय करेगें? राजनीति के जानकारों का यह जरूर कहना है कि वर्तमान में हवा का जो रूख दिखायी दे रहा है वह तो भाजपा के अनूकूल नहीं दिख रहा है।