आज देश अपने स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर वर्ष की तरह सत्ता शीर्ष पर बैठे नेताओं के तमाम बधाईयों के संदेश देशवासियों को मिल रहे है। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कल राष्ट्रपति और आज लालकिले से पीएम मोदी ने भी देश के स्वतंत्रता दिवस की बधाईयंा देशवासियों को दी गयी। आजादी की वर्षगांठ पर अगर इस बात का जिक्र कि हमने इन 77 सालों में विकास की इमारत को किन बुलंदियों पर पहुंचा दिया है। तो इसक बिना राजनीति की बात पूरी नहीं हो सकती है। लेकिन क्या इस सबके बीच देश के आम आदमी की स्वतंत्रता का जिक्र जरूर किया जाना चाहिए। सरकारी आंकड़ों में भारत देश विकास के पथ पर भले ही दौड़ता दिख रहा हो लेकिन इसके इतर देश के अंदर एक ऐसा भारत भी है जिसके पास तक आजादी के 77 साल बाद भी विकास का एक झौंका तक नहीं पहुंच सका है। एक साधारण सा सवाल यह है कि देश की कुल आबादी जो 140 करोड़ के आस—पास है उसमे कितने लोग ऐसे है जिनके पास इतनी वित्तीय क्षमता है कि वह अपनी रोटी, कपड़ा, मकान जैसी मूल जरूरतों को पूरा करते हुए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सके या बीमार होने की स्थिति में अपना उचित इलाज करा सकने में सक्षम हो? आजादी के अमृतकाल और विकसित भारत के संकल्प के बीच इस सच्चाई से नजरेें मिलाने की हिम्मत आज किसी भी नेता के पास नहीं है। अगर देश के आम आदमी की वित्तीय स्थिति आजादी के 77 साल बाद भी ऐसी रही होती कि वह स्वंय अपनी सभी जरूरतों को बोझ खुद उठा पाने की आर्थिक स्वतंत्रता को हासिल कर पाया होता तो देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को सरकार से मिलने वाले मुफ्त या सस्ती दर के राशन पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। देश की कुल राष्ट्रीय आय के 22.6 फीसदी हिस्से पर जब देश के एक प्रतिशत धनपति अपना कब्जा जमाए बैठे है तब आम आदमी की स्वतंत्रता की बात बेमायने है। 2022 में विश्व राष्ट्रो के हंगर इन्डेक्स में भारत 107वें स्थान पर था जो अब 2023 में 111वें स्थान पर पहुंच गया है। देश के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले छोटे किसान और मजदूरों की प्रति व्यक्ति आय 4 हजार रूपये महीना है। इस मंहगाई के दौर में एक व्यक्ति इस आय में भला कैसे गुजर—बसर करता है इसे समझने को न कोई तैयार हुआ है न होगा। यह आबादी को छोटी मोटी नहीं 60 फीसदी के आस पास है। अभी सरकार द्वारा 2024—25 के बजट में शिक्षा के लिए 1 लाख 25 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। जो 326 लाख करोड़ जीडीपी के अनुमान का महज 0.38 फीसदी है। भारत में इस समय अगर स्कूली बच्चों की बात की जाये तो उनकी संख्या 24 करोड़ के आस—पास है इस बजट से इन बच्चों को कितनी बेहतर शिक्षा मिल सकती है यह आप खुद सोच सकते है। सरकार का दावा है कि उसने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाने का काम किया है। दो दिन पहले ही सरकार ने खुदरा मंहगाई दर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर 3.7 फीसदी पर आने का दावा किया है। जबकि बीते एक साल में आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें 25 से 30 फीसदी तक बढ़ी है। आजादी के 77 साल में आम आदमी को कितनी आर्थिक आजादी मिल सकी है उसकी जमीनी हकीकत को समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए आप भी ज्यादा मत सोचिये स्वतंत्रता दिवस की बधाईयंा स्वीकार कीजिये और आत्मनिर्भर भारत तथा विकसित भारत के संकल्पो के साथ आगे बढ़िये