किसकी गारंटी, किस पर भारी?

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अभी लोकसभा चुनाव के दो चरण और 115 सीटों पर मतदान होना शेष है लेकिन बीच चुनाव में ही एनडीए और इंडिया गठबंधन द्वारा मजबूती के साथ अपनी—अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। जो इस बात को दर्शाते हैं कि 2024 का यह चुनाव एक ऐसे जबरदस्त मुकाबले में पहुंच गया है जो किसी के लिए भी आसान नहीं रहा है। चुनाव के शुरुआती दौर में सत्तारूढ़ भाजपा को जो जीत बहुत आसान दिख रही थी वह हर रोज कठिन और कठिन होती चली गई। अपने आप को बेदाग समझने वाली सरकार और उसके नेता कुछ अदालती फैंसलों से जहां असहज होते दिखे वही अत्यंत कमजोर और बिखरा—बिखरा दिखने वाला विपक्ष हमलावर स्थिति में आता चला गया। राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा और उसके बाद चुनावी घोषणा पत्र न्याय पत्र ने तो सारी बाजी को ही पलट कर रख दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार ने 10 साल में गरीब कल्याण योजनाओं से जोड़े गए 80—90 करोड़ लाभार्थियों को भाजपा की बड़ी ताकत समझा जा रहा है तथा भाजपा के पास जो सांगठनिक मजबूती और मोदी का चेहरा जिसे लेकर मोदी है तो मुमकिन है जैसे नारे गढ़ कर अजेय भाजपा का नैरेशन सेट किया गया वह एक झटके में इस तरह से निष्प्रभावी साबित किया जा सकता है यह शायद भाजपा के किसी भी रणनीतिकार ने सोचा तक नहीं था। हर बात के साथ यह है मोदी की गारंटी यानी की गारंटी की भी गारंटी का प्रचार करने वाले पीएम मोदी और उनकी गारंटियों पर इंडिया व कांग्रेस के न्याय पत्र की 25 गारंटी इतनी भारी पड़ जाएगी इसका भी अंदाजा भाजपा के रणनीतिकार नहीं लगा सके। कांग्रेस ने अपने इस न्याय पत्र में 25 गारंटीयों के माध्यम से गरीब महिलाओं किसानों तथा आदिवासियों के लिए इतनी मोटी और लंबी लकीर खींच दी गई कि शायद इससे और अधिक की कुछ गुंजाइश शेष नहीं बची थी। भाजपा के पास इस न्याय पत्र की यह कहकर आलोचना करने कि इसमें किए गए वायदे इतने अविश्वसनीय हैं जिन्हें पूरा किया ही नहीं जा सकता है या फिर इस पर मुस्लिम लीग की छाप है या फिर इंडिया जामिया मॉडल देश में लागू करना चाहता है। अथवा देश को सांप्रदायिक और जाति आधार पर बांटना चाहता है जैसी बातें करने के अलावा हिंदू—मुस्लिम और पाकिस्तान कहने के सिवाय कुछ शेष नहीं बचा। यह कहना कदाचित भी गलत नहीं है कि कांग्रेस से ज्यादा प्रचार इस न्याय पत्र का भाजपा नेताओं द्वारा किया गया। गरीब कल्याण के नाम पर मोदी सरकार भी मुफ्त राशन और डायरेक्ट कैश बेनिफिट की खूब रेवड़िया बांट रही थी और उनके ही आसरे जीत की हैट्रिक का ही नहीं अबकी बार 400 पार का दावा भी कर रही थी लेकिन पांच चरण का मतदान संपन्न होते—होते एनडीए नेताओं को बखूबी अंदाजा हो चुका है। कांग्रेस व इंडिया गठबंधन ने इस चुनाव में उसने मोदी मैजिक के साथ—साथ राम मंदिर निर्माण के जरिए हिंदुत्व की लहर पैदा करने की कोशिशों के साथ उसके लाभार्थियों और आरक्षण की राजनीति को भी हासिये पर धकेल दिया है। पांच चरण के चुनाव में भाजपा और एनडीए के नेताओं द्वारा किसी जन सरोकार के मुद्दे पर बात न किया जाना तथा पुराने इतिहास को दोहराने तथा भ्ौंस चोरी मंगलसूत्र चोरी अधिक बच्चे पैदा करने वालों को सारी संपत्तियां बांट देने सांप्रदायिकता और परिवार वाद जैसी बातों तक ही सीमित हो जाना बताता है कि यह चुनाव 2014 और 2019 जैसा चुनाव नहीं है। मोदी और राहुल की गारंटी में से जनता किसकी गारंटीयों पर अधिक भरोसा जताएगी यह तो 4 जून को चुनाव नतीजे ही बताएंगे। सर्वे और विश्लेषज्ञों के आधार पर कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता क्योंकि यह सभी प्रायोजित ही होते हैं। माना तो यह भी जा रहा है कि इस बार किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिल सकेगा। ऐसी संभावनाओं से यही संदेश मिलता है कि सत्ता में कोई भी आए लेकिन मुकाबला संघर्षपूर्ण रहने वाला है।

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