उत्तराखंड राज्य गठन को दो दशक से अधिक का समय हो चुका है। राज्य गठन के बाद तमाम सारे मुद्दे ऐसे हैं जिन पर सरकारों को फैसला बहुत पहले करने की जरूरत थी लेकिन सरकारों ने उन सभी मुद्दों को लटकाए रखकर उन्हें राजनीतिक मुद्दा बनाए रखा गया है। बात चाहे राज्य की स्थाई राजधानी की हो अथवा मूल निवास की अथवा मलिन बस्तियों के नियमित कारण या राजस्व पुलिस व्यवस्था की। अब तक की सरकारों ने ऐसे तमाम मुद्दों के समाधान के लिए कभी गंभीरता से आगे बढ़ने का प्रयास नहीं किया गया है। खास बात यह है कि कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ने दिशा निर्देश जारी किए हैं लेकिन सत्ता में बैठे लोगों ने उन पर अमल करने की बजाय उनसे कैसे बचा जा सकता है? उसके नए—नए तरीके खोजने का काम भी बखूबी किया गया है। राज्य में अंग्रेजों के समय से जारी राजस्व पुलिस व्यवस्था को अभी तक अस्तित्व में बनाए रखना इसका एक बढ़िया उदाहरण है। 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने आदेश में कहा गया था कि राजस्व पुलिस के पास आधुनिक संसाधनों का अभाव है उसके पास न कंप्यूटर है न खून और डीएनए तथा विसरा परीक्षण के लिए फोरेंसिक जांच की सुविधाएं हैं और न ही अपराध नियंत्रण की आधुनिक तकनीक, यहां तक की राजस्व पुलिस के पास आधुनिक हथियार और संसाधनों से लेकर उनके पास प्रशिक्षण तक की समुचित व्यवस्था नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी राजस्व पुलिस अस्तित्व में बनी हुई है जिसका कोई औचित्य नहीं है। इसके साथ ही एक राज्य में दो तरह की पुलिस व्यवस्था नहीं होनी चाहिए जैसी बात कहकर इसे समाप्त करने और उसकी जगह रेगुलर पुलिस व्यवस्था करने की बात कही गई थी लेकिन 20 साल बाद भी राज्य के कुछ हिस्सों में राजस्व पुलिस अस्तित्व में बनी हुई है। बात अगर राजस्व पुलिस की कार्य प्रणाली की करें तो अभी खबरों की सुर्खियों में रहने वाले अंकिता भंडारी हत्याकांड में राजस्व पुलिस क्या काम करती है और कैसा काम करती है इसकी हकीकत हम सभी ने देखी थी। इस बड़े आपराधिक मामले में राजस्व पुलिस की आरोपी पक्ष के साथ दोस्ती और उन्हें बचाने के लिए किए गए प्रयासों पर खूब हंगामा हुआ था। जिसके बाद राजस्व पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही हुई और इसकी जांच रेगुलर पुलिस को सौंपी गई। बीते कल नैनीताल हाई कोर्ट द्वारा राजस्व पुलिस को राज्य से पूरी तरह समाप्त करने के आदेश दिए गए हैं। हाईकोर्ट ने सरकार को इसके लिए एक साल का समय दिया है। धामी सरकार ने अंकिता हत्याकांड के बाद 2022 में 6 नये पुलिस थाने और 20 चौकिया खोली थी तथा कुछ भागों से राजस्व पुलिस की व्यवस्था को समाप्त किया गया था लेकिन उसके बाद फिर मामला रुक गया। यहंा यह भी उल्लेखनीय है कि 2018 में भी हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश दिए थे। सवाल यह है कि सरकार हीला हवाली क्यों कर रही है क्यों इस बेकार व्यवस्था को जल्द समाप्त करने के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। अगर राज्य के सिर्फ दो फीसदी हिस्से में ही राजस्व पुलिस शेष बची है तो इसे भी जल्द समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है। हाईकोर्ट द्वारा अब सरकार को एक बार फिर आदेश दिए गए हैं कि एक साल के अंदर राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर पूरे राज्य में रेगुलर पुलिस व्यवस्था बहाल की जाए। देखना है कि सरकार इस पर कब तक अमल कर पाती है या अभी भी इसे लटकाए रखा जाता है।