भ्रष्टाचार का यह कैसा चुनाव?

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देश की राजनीति के चेहरे से नकाब धीरे—धीरे सरकता जा रहा है और उसका असल चेहरा सामने आ रहा है। यह अलग बात है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदान करने वाले उन 60—65 फीसदी मतदाता उसे कितना देख और समझ पाते हैं? क्योंकि चुनावी शोर और झूठ का प्रचार—प्रसार इतना जोरदार तरीके से किया जा रहा है कि सच को समझ पाना या देख पाना आम आदमी के लिए लगभग असंभव हो गया है। अगर हम अपनी बात डा. हरक सिंह रावत से शुरू करें तो शायद ज्यादा ठीक होगा जो इन दिनोंं कॉर्बेट सफारी घोटाले को लेकर ईडी और सीबीआई के शिकंजे में फंसे हुए हैं और नोटिस पर नोटिस के बाद भी पेशी का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। खबर आई कि वह फिर भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने यह कहकर इस पर विराम लगा दिया कि उन्हें भाजपा में शामिल नहीं किया जाएगा। वह अगर भाजपा में नहीं जाएंगे या भाजपा उन्हें पार्टी में नहीं लगी तो फिर उनका जेल जाना तय है। ईडी और सीबीआई जिसके भी पीछे लग जाए तो फिर दो ही बातें होती है तीसरा कोई रास्ता नहीं है। अभी बीते दिनों कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने प्रेस वार्ता में कहा था कि बीते 10 सालों में 411 विधायक और सांसद कांग्रेस व अन्य दलों को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। अभी कांग्रेस ने एक वाशिंग मशीन के साथ पत्रकार वार्ता की थी जिसमें कहा गया था कि भाजपा ऐसी वाशिंग मशीन है जिसमें धुल कर भ्रष्टाचारी भी साफ सुथरे हो जाते हैं और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है। पूर्व विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल और एनसीपी के अजीत पंवार तथा नवीन जिंदल जिनके ऊपर बड़े घोटाले के आरोप थे इसके उदाहरण हैं। भले ही किसी हिंदी के अखबार ने इस मुद्दे पर कहने या लिखने का साहस न दिखाया हो लेकिन अंग्रेजी के इंडियन एक्सप्रेस ने पूरे तथ्यों के साथ उन सभी का कच्चा चिट्ठा छाप कर सच को सामने ला दिया है। छापों के चंदे के धंधे का सच भी उजागर किया गया और किसे जेल हुई और किसे बेल मिल गई इसके भी साक्ष्य छापे गए हैं। अंग्रेजी अखबार में छपी यह रिपोर्ट उन लोगों तक भले ही न पहुंचे जो मतदाता अखबार नहीं पढ़ने या जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है। भ्रष्टाचार को लेकर इस चुनाव में सबसे ज्यादा शोर मचाया जा रहा है। बात भ्रष्टाचार मिटाने की हो रही है लेकिन राजनीति भ्रष्टाचारी जटाने की। चंदे के धंधे में ईडी, सीबीआई और राजनीतिक दल कैसे घुल मिल चुके हैं और जनता को झूठ बोलकर कैसे गुमराह किया जा रहा है इसे आने वाले 10 सालों में भी मतदाता नहीं समझ पाएंगे। कांग्रेस भले ही कितना भी जोर लगा ले या शोर मचा ले उसकी आवाज नक्कार खाने में तूती ही साबित होगी। जनता या मतदाताओं तक राहुल गांधी का न देश में आग लगने वाला बयान पहुंचेगा कि उन्होंने वास्तव में क्या कहा था और शक्ति के खिलाफ लड़ाई वाला वह बयान जिसे भाजपा ने मुद्दा बनाया। क्योंकि वर्तमान लोकसभा चुनाव सच का चुनाव नहीं है कांग्रेस को चुन चुन कर खत्म करने का चुनाव है जिसकी घोषणा भाजपा कर चुकी है। इस चुनाव के बाद ही तय होगा कि इस देश के लोकतंत्र का क्या होगा। बस 4 जून का इंतजार करिए।

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