बहुत खास है यह आम चुनाव

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निर्वाचन आयोग द्वारा आज लोकसभा चुनाव की घोषणा और चुनाव कार्यक्रमों की तारीखे तय करने के साथ देश भर में महीनों से जारी लोकार्पण और शिलान्यासों का सिलसिला थमने जा रहा है। देश के लोकतंत्र की यह एक बड़ी विडंबना रही है कि चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ लागू होने वाली चुनाव आचार संहिता से पूर्व सत्ताधारी दलों और नेताओं का चुनावी तैयारियों के लिए सरकारी तंत्र और संसाधनों का भरपूर दुरुपयोग करने से कोई उन्हें नहीं रोक सकता है। पूरे चुनाव पर जितना पैसा खर्चा किया जाना चाहिए उससे कई गुना ज्यादा पैसा जो जनता की गाड़ी कमाई का होता है पानी की तरह बहा दिया जाता है। 2024 के इस चुनाव में प्रचार प्रसार का जो उफान या यूं कहें कि तूफान इस बार देखा गया है वैसा शायद पहले कभी नहीं देखा गया। और न ही इससे पूर्व इतनी तेजी से चुनावी मुद्दों के बदलते और उनकी हवा निकलते देखा गया। अभी 22 जनवरी को गए बहुत लंबा समय नहीं गया है। जब राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के जरिए भाजपा ने पूरे देश में 1990 के दशक जैसी राम लहर पैदा कर दी थी प्रधानमंत्री मोदी का संसद सत्र में वह राम—राम का अभिवादन संबोधन और अबकी बार 400 पार का नारा तथा विपक्ष के 2024 के चुनाव के बाद दर्शक दीर्घा में बैठे नजर आने जैसे बयान सभी को याद होंगे। लेकिन जिन मुद्दों पर सवार होकर सत्ता पक्ष चुनाव से पूर्व ही अपनी जीत की गारंटी दे रहा था महज बीते एक डेढ़ महीने में ही वह सब दावे बेदम हो गए हैं। इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के एक ही फैसले ने सत्ता पक्ष के गुमान के गुब्बारे की हवा निकाल दी। कांग्रेस जिसके पास खोने के लिए अब कुछ नहीं बचा और जिसे छोड़ छोड़ कर उसके अपने नेता ही भाग खड़े हुए हैं उसे कांग्रेस के अकेले राहुल गांधी ने, जिसे कल तक भाजपा के नेता पप्पू कहा करते थे अपनी सामाजिक न्याय यात्रा के जरिए इस बात पर विवश कर दिया है कि वह न सिर्फ उनकी बातों को गौर से सुन रहे हैं बल्कि उनके सवालों पर अब सफाई देने पर विवश हो गए हैं। इलेक्टोरल बांड का विस्फोट इतना भयंकर तरीके से हुआ है कि एसबीआई और चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं भी सरकार का बचाव नहीं कर पा रही है। सोशल मीडिया पर चौकीदार चोर की अनुगूंज ने भाजपा की सत्ता को हिला कर रख दिया। जातियों के आरक्षण का मुद्दा गरीबों को अपना परिवार बताने पर आकर टिक चुका है। चुनाव पूर्व किए जाने वाले उन तमाम ओपिनियन पोल्स को अब देश की जनता मोदी मीडिया का शगुफे बाजी बता रही है। मोदी है तो मुमकिन है वाली भाजपा को अब यह पता चल चुका है कि इस चुनाव में मोदी के चेहरे पर कोई करिश्मा होने वाला नहीं है। बीते 10 सालों में किए गए वादों की लंबी फेरहिस्त हाथ में लेकर लोग पूछ रहे हैं मोदी की इन गारंटियों का क्या हुआ? विकसित भारत का सपना अब भाजपा नेताओं की जुबान से गायब होता दिख रहा है। भाजपा को भी शायद यह समझ आने लगा है कि अब सिर्फ शगूफेबाजी से बात नहीं बन सकती है। पल—पल बदलते मुद्दे और चुनावी हवा के इस दौर में होने वाला यह लोकसभा का चुनाव सामान्य चुनाव रहने वाला नहीं है अगर यह चुनाव जनता और मुद्दों का चुनाव बन गया तो इस चुनाव के बाद देश की राजनीतिक दशा व दिशा दोनों ही बदल जाएंगे यह तय है।

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