अंकिता भण्डारी की हत्या को डेढ़ साल से अधिक होने जा रहा है। लेकिन इस हत्याकांड को लेकर आज भी जनाक्रोश बरकरार है और विरोध प्रदर्शन भी लगातार जारी है। जिसके पीछे कुछ तो कारण है? अगर शासन—प्रशासन पर लगातार यह आरोप लग रहे है कि वह इस मामले को दबाने का प्रयास कर रहा है तो यह बेवजह नहीं है। कई ऐसे सवाल है जो इस संदेह को पुख्ता करते है। इस हत्याकांड के घटनाक्रम पर अगर सिलसिलेवार गौर किया जाये तो कई सवालों के जवाब ढूंढने से भी नहीं मिलते है। अंकिता भण्डारी की हत्या 18 सितम्बर 2022 को की गयी थी और खुद आरोपियों द्वारा 19 सितम्बर को राजस्व पुलिस में उसकी गुमशुदगी दर्ज करायी गयी। लेकिन 23 सितम्बर तक राजस्व पुलिस ने इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गयी क्योंकि राजस्व पुलिस का पटवारी खुद इस मामले में आरोपियों का राजदार था। और उसे इस घटना के बारे में पूरी जानकारी थी। मामले के तूल पकड़ने पर रेगुलर पुलिस द्वारा 23 सितम्बर को अंकिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गयी और उसी दिन तीनो हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिनकी गिरफ्तारी होते ही उसी रात वनंतरा रिजार्ट के उसी कमरे पर बुल्डोजर चलवा दिया गया जिसमें अंकिता रहती थी। 24 सितम्बर यानि अंकिता की हत्या के एक सप्ताह बाद चीला नहर से आरोपियों की निशानदेही पर अंकिता का शव बरामद कर लिया गया। हैरत की बात यह है कि पुलिस प्रशासन लाख कोशिशों के बाद भी अंकिता और मुख्य आरोपी का फोन आज तक बरामद नहीं कर सका और न एसआईटी को रिजार्ट में कोई अहम सबूत मिल सके। यही नहीं इस मामले में पूरे प्रदेश व देश के लोगों को यह जानकारी है कि इसमें कोई वीआईपी की मौजूदगी भी है जिसके लिए स्पेशल सर्विस देने का अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था। उसका पता भी आज तक नहीं चल पाया है? इस पूरे केस में हर कदम पर लापरवाही की क्या वजह हो सकती है चाहे वह बुल्डोजर चलाने, फोन बरामद न होने या वीआईपी का पता न चलने की बात हो। अंकिता के मां बाप एक बार फिर अंकिता को न्याय दिलाने के लिए धरने पर बैठे है। अब सोचनीय सवाल यह है कि क्या देवभूमि में अंकिता को कभी न्याय मिल सकेगा?