चंदे के फंदे में फंसी सरकार

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प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता के शीर्ष पहुंचने वाला कोई भी दल अगर यह चाहे या यह मान ले कि वह कुछ भी करने का अधिकार रखता है अथवा वह जो कुछ कर रहा है वह सब कुछ सही है, क्योंकि यह करने का अधिकार उसे देश की जनता ने दिया है तो यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कदाचित भी संभव नहीं है। राजनीतिक दलों के चंदे के इलेक्टोरल बांड के फंडे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का जो फैसला आया है वह इसकी सिर्फ तस्दीक ही नहीं करता है अपितु उन सभी लोगों को आस्वस्त भी करता है जो बीते दिनों 2024 के लोकसभा चुनाव को आखिरी चुनाव होने की आशंका जता रहे थे कि देश से लोकतंत्र समाप्त होने वाला है। यह बहुत आसान नहीं है देश के राजनीतिक दल और आम जनता भले ही सत्ता की निरंकुशता पर लगाम लगाने में नाकाम होते दिख रहे हो लेकिन देश की न्यायपालिका ऐसा हरगिज भी नहीं होने देगी। अभी हाल में ही सुप्रीम कोर्ट के कल इलेक्टोरल बांड और चंडीगढ़ में मेयर चुनाव पर आए दो फैसलों से यह साफ हो गया है कि देश के लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर कोई भी सत्ता या नेता गलत तरीके अपनाकर नहीं छीन सकता है। अब सवाल यह है कि चंडीगढ़ के मेयर चुनाव की धांधली को अगर सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र की हत्या बताता है और इलेक्टोरल बांड को काले धन को सफेद करने का जरिया और मनी लांर्डिंग का स्रोत समझता है जिसके जरिए सत्ता में बैठे लोग कॉर्पाेरेट को फायदा पहुंचाकर धन बटोरने के काम में जुटे हुए हैं तब क्या सत्ता में बैठे लोग और सरकार इन फैसलों से कोई सबक लेंगे हम और आप यह सोच ही सकते हैं लेकिन ऐसा होने वाला है नहीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अगर पूरा अमल हो सका तो इस बड़े फर्जीवाड़े का कच्चा चिट्ठा जरूर सबके सामने आ जाएगा। जिसे छुपाने के लिए सॉलीसिटर तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में यह दलील पेश कर रहे थे कि न तो सरकार यह जानना चाहती है कि किसने चंदा दिया और कितना दिया और न चंदा देने वाला यह चाहता है कि किसी को यह पता चले कि उसने किसे कितना चंदा दिया है। फिर इसकी जरूरत ही क्या है जानने की। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि देश को यह जानने का अधिकार है और इसकी जानकारी सार्वजनिक करनी ही होगी तो सत्ता में बैठे लोगों का बेचैन होना अब स्वाभाविक ही है। इलेक्टोरल बांड से अब कुल 15000 करोड़ का चंदा मिला है। जिसका 72 फीसदी यानी 11000 करोड़ के आसपास अकेले भाजपा को मिला है। धन कोई किसी को अकारण तो देता नहीं है। किस उघोगपति ने कब—कब कितना किसको दिया यह पता चलेगा तो यह भी पता चलेगा क्यों दिया? उसके बदले में सरकार ने उसे क्या—क्या दिया इसका भी पता चल ही जाएगा क्योंकि अब बात निकली है तो बहुत दूर तक जाएगी। 2024 के चुनाव से एन पूर्व आए इस सुप्रीम कोर्ट के फैसले का चुनाव पर कितना असर पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन हां इस फैसले ने भाजपा नेताओं में बेचैनी जरूर पैदा कर दी है क्योंकि विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को संसद से लेकर सड़क तक घेरता रहा है और अब इस पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी मोहर लगा दी है।

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