तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को रिश्वत लेकर संसद में सवाल पूछने का दोषी मानते हुए उन्हें संसद की सदस्यता से वंचित कर दिया गया है। एक दूसरा बड़ा समाचार कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू के पास करोड़ों रुपए की बरामदगी का है जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तस्वीर के साथ पोस्ट करते हुए लिखा है कि देश के लोग इस नोटों के ढेर को देखें जो जनता की गाढ़ी कमाई से लूटा गया है साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि लेकिन हम ऐसे लोगों को छोड़ेंगे नहीं यह मोदी की गारंटी है। यह दोनों ही घटनाएं सिर्फ देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को ही रेखांकित नहीं करती है अपितु हमारे माननीयों और सांसदों के आचरण की भी नग्न तस्वीरें को प्रदर्शित करती है। भले ही तृणमूल कांग्रेस की संासद अब अपने ऊपर के आरोपो को गलत बताती रही है या संसद की आचार समिति पर यह आरोप लगाती रहे कि बिना उनका पक्ष जाने ही उन्हें सजा सुना दी गई है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धुंआ वहीं उठता है जहां आग होती है। मोदी के मुकाबले एकजुट होकर खड़े हुए इंडिया के घटक दलों के नेताओं द्वारा भले ही केंद्र की सरकार पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वह सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है तथा विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार के झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है लेकिन इन नेताओं को यह भी स्वीकार करने और समझने की जरूरत है कि वह एक जुटता के दम पर अपने गलत कामों पर न तो पर्दा डाल सकते हैं और न ही मोदी और भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं। यह देश के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हुआ है जब संसद की अचार समिति की सिफारिश पर किसी सांसद की लोकसभा सदस्यता खत्म की गई हो। 2005 में भी भ्रष्टाचार के ऐसे मामले को लेकर 11 सांसदों की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। फर्क सिर्फ इतना है कि आज जो हो रहा है इस समय केंद्र मेंं भाजपा की सरकार है और तब कांग्रेस की सरकार थी और आज विपक्षी दल इसके विरोध में सोनिया गांधी के नेतृत्व में इस कार्यवाही का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन कर रहे हैं और 2005 में लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में विपक्ष ने बर्हिगमन किया था। संसद की आचार समिति के रिपोर्ट के अनुसार महुआ ने अनधिकृत रूप से अपना सांसद वाला स्लाग इन अकाउंट किसी बाहरी व्यक्ति को शेयर किया जो एक गंभीर अपराध है। यही नहीं इस अकाउंट का 2019 से 2023 के बीच 47 बार प्रयोग किया गया। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि उन्होंने सदन में जो 61 सवाल पूछे उनमें से 50 सवाल विदेश में बैठे एक व्यवसायी को लाभ पहुंचाने से जुड़े थे। देश की जनता अगर किसी को संसद में बैठने का अधिकार देती है तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह संसद में बैठकर अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति करें। यह संसद और सांसद दोनों को ही गरिमा के प्रतिकूल है जिसे रोकने के प्रयास किये ही जाने चाहिए। रही बात कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू की तो उनके पास से छापे के दौरान जो 156 बैग नोटों से भरे मिले हैं जिसमें 225 करोड रुपए बरामद हुए हैं उसके बारे में उन्हें बताना ही चाहिए कि उनके पास यह भारी भरकम रकम कहां से आई, इस आय का जरिया क्या है। मायने यह बात नहीं रखती है कि धीरज साहू किस पार्टी के सांसद हैं न 225 करोड़ की रकम का सवाल अहम है। महत्वपूर्ण बात है कि एक सांसद और जनप्रतिनिधि का भ्रष्टाचारी होना। जिससे हम भ्रष्टाचार रोकने और एक उच्च आदर्शवादी आचरण की उम्मीद करते हैं। देश को अगर देश के नेता इस तरह से लूटते रहेंगे तो देश के गरीब तो हमेशा गरीब ही बने रहेंगे। अभी एक समाचार आया था मध्य प्रदेश में इतने विधायक करोड़पति और राजस्थान में इतने विधायक करोड़पति। क्या देश में कोई भी एक नेता या जनप्रतिनिधि चाहे वह छोटा हो या बड़ा क्या कोई गरीब है? नेताओं के अमीर और अधिक अमीर होने का रहस्य और क्या कुछ हो सकता है शिवाय भ्रष्टाचार के। लेकिन मिसाल के तौर पर ही सही इनके खिलाफ कार्यवाही का आभार।