निशाने पर माननीय

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चुनावी मौसम आते ही देश का राजनीतिक और सामाजिक माहौल बदलने लगता है। इन दिनों महाराष्ट्र और तेलंगाना से कुछ खबरें ऐसी आ रही हैं जो अत्यंत ही चिंताजनक है। महाराष्ट्र में सत्ताधारी दल के विधायक प्रकाश सोलंकी के घर पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थर बरसाए और उनके घर को आग के हवाले कर दिया। वहीं प्रदर्शनकारियों ने भाजपा के विधायक प्रशांत के कार्यालय में भी तोड़फोड़ की तथा नगर पालिका परिषद भवन की एक मंजिल को भी आग के हवाले कर दिया। उधर तेलंगाना में चुनाव प्रचार के दौरान सांसद के पी रेड्डी पर चाकू से हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया खैर उनकी जान किसी तरह से बच गई चाकू उनके पेट में लगा है अगर मौके पर मौजूद भीड़ ने उन्हें नहीं बचाया होता तो उनकी जान भी जा सकती थी। महाराष्ट्र और तेलंगाना की यह घटनाएं माननीयों के खिलाफ बढ़ते उस जनाक्रोश का प्रतीक है जो इन माननीयों के अपने आचरण के कारण ही पैदा हो रहा है या पनप रहा है। क्योंकि जब यह नेता चुनाव लड़ रहे होते हैं तो जनता से तमाम तरह के वायदे कर रहे होते हैं उनके हर सुख दुख में उनके साथी होने का भरोसा दिलाते हैं और चुनाव जीतने के बाद वह सब कुछ भूल जाते हैं उन्हें पूरे 5 साल तक एक बार भी जनता के बीच जाने तथा उनकी परेशानियों को सुनने तक की फुर्सत नहीं होती है। बीते समय में हम इस जनक्रोश को किसी नेता के चेहरे पर काली स्याही फेंकने या फिर भीड़ के बीच से चप्पल या जूता उछालने अथवा थप्पड़ जड़ने की घटनाओं के तौर पर देखते रहे हैं। कई मामलों में इस तरह की घटनाओं को राजनीतिक विरोधियों द्वारा अंजाम दिलाए जाने की बातें भी सामने आती रहती हैं जो अब आगजनी और जानलेवा हमलों तक पहुंच चुकी है जो देश की राजनीति और लोकतंत्र दोनों के लिए ही अच्छे संकेत नहीं माने जा सकते हैं। दरअसल हमारे लोकतंत्र में सत्ता के लिए तमाम तरह की तिकड़मबाजियां और जोड़—तोड़ किया जाना जो एक रवायत बन चुका है, के कारण भी माननीयों का मान सम्मान दांव पर लगा हुआ है। सत्ता में रहते हुए भले ही उनकी सुरक्षा का कवच अभेद बना रहे लेकिन विपक्ष में आते ही यह सुरक्षा कवच भेद हो जाता है। एक तरफ तो हमारे माननीय आम जनता के निशाने पर आ जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी दलों द्वारा सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग का जो चलन लंबे समय से देश में चल रहा है, के कारण इस चुनावी दौर में तमाम विपक्षी दलों के माननीय सीबीआई और ईडी के निशाने पर हैं। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री जिन्हे ईडी ने बहुत पहले जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया है, के बाद अब दिल्ली के सीएम केजरीवाल को भी ईडी का सम्मन आ चुका है यानी आम आदमी पार्टी की कमर तोड़ने की पूरी तैयारी हो चुकी है। यदि केजरीवाल भी शराब घोटाले में जेल गए तो उनकी पार्टी को लोकसभा के चुनाव में बड़ा झटका लगना लगभग तय है। क्योंकि यह उनकी छवि से जुड़ा हुआ मुद्दा है। छोटे—बड़े स्तर पर देश में सैकड़ो नेता ईडी व सीबीआई के निशाने पर है जिसमें उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत व हरक सिंह रावत के नाम भी शामिल हैं। कहने का आशय है कि एक तरफ इस चुनावी बेला में माननीय जनता के निशाने पर है तो दूसरी ओर वह सीबीआई और ईडी के निशाने पर भी हैं। हम यह नहीं कहना चाहते कि जो गलत करें उसके खिलाफ कार्रवाई न की जाए लेकिन इन दोनों ही रवायतों और घटनाओं पर रोक लगाने की जरूरत है इसके लिए क्या कुछ प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं इस पर चिंतन मंथन जरूरी है क्योंकि यह समाज और राजनीति ही नहीं लोकतंत्र से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

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