परिवर्तन समय का सापेक्षिक गुण ही नहीं है अपितु निरंतर विकास के इतिहास का रचयिता भी है। आजादी के अमृत काल में आज का दिन इस देश के इतिहास में एक नया अध्याय है जो 76 साल पुरानी अपनी उस संसद को अलविदा कह रहा है जहां से देश के लोकतंत्र की नींव रखी गई व उस नए संसद भवन का बाहें पसारकर स्वागत कर रहा है जिस पर नए भारत के भविष्य और विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र की हिफाजत की जिम्मेवारी है। पुराने संसद में कल आयोजित लोकसभा सत्र के अंतिम दिन मोदी सरकार की कैबिनेट में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देकर और अब नए संसद भवन में इस प्रस्ताव को पारित कराकर लोकतंत्र की अच्छाई के साथ आगे बढ़ने का संदेश देने की कोशिश की गई है। संसद का यह विशेष सत्र बुलाने से पहले ही इस सत्र में कुछ विशेष करने का संकेत प्रधानमंत्री ने दिया था। इस सत्र का क्या विशेष एजेंडा है इसे लेकर तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे थे जिससे अब धीरे—धीरे पर्दा उठाने शुरू हो गया है भले ही कैबिनेट की इस बैठक के बाद भी कैबिनेट के फैसलों की कोई आधिकारिक जानकारी न दी गई हो लेकिन महिला आरक्षण बिल जो विगत 27 सालों से राजनीतिक दांव पेचों में उलझा हुआ था उसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस फैसले की अहमियत को महिलाओं को बराबरी पर लाने के लिहाज से अति महत्वपूर्ण माना जा रहा है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर इस फैसले का पढ़ने वाला प्रभाव है। महिला आरक्षण बिल को 2010 में जब यूपीए सरकार द्वारा लाने का प्रयास किया गया था उस समय लोकसभा में इसे रोकने के लिए किस कदर हंगामा किया गया था और इसके पीछे क्या कारण निहित थे हम सभी जानते हैं। उच्च सदन में पारित होने के बाद भी इसे लोकसभा में नहीं लाया जा सका था। 27 साल बाद अगर आज इस बिल को मोदी सरकार द्वारा फिर से संसद में लाया जा रहा है तो इस सरकार से यह तो पूछा ही जा सकता है कि भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली और मोदी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्रीय सत्ता में साढ़े नौ सालों से काबिज है तो उसे इतने लंबे समय बाद और 2024 के चुनाव से एन पहले ही इस महिला आरक्षण विधेयक की याद क्यों आ गई। बहुत इधर—उधर सोचने की जरूरत नहीं है। बात देश की आधी आबादी और वोटो से जुड़ी है। देश में सरकार द्वारा जब उज्ज्वला जैसी योजनाओं को महिला वोट बैंक को लुभाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिनको अब कुछ मुफ्त सिलेंडर व किफायती दरों पर सिलेंडर मुहैया कराये जा रहे हैं वहीं अभी 75 लाख लाभार्थियों को इसका लाभ दिया जा रहा है तो महिलाओं को राज्यों की विधानसभाओं और संसद में 33 फीसदी आरक्षण मिलने का मुद्दा तो बहुत बड़ा है। सरकार के इस फैसले की भनक विपक्ष को लग चुकी थी यही कारण है कि विशेष सत्र से पूर्व सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने सरकार के सामने महिला आरक्षण बिल लाने की मांग रख दी गई। खैर सरकार इस बिल को पारित करने में पूर्ण सक्षम है तथा विपक्ष भी इसका 2010 जैसा विरोध नहीं करेगा इसलिए इस देश की महिलाओं के हित संरक्षण और कल्याण से जुड़ा यह बिल निश्चित पारित हो जाएगा जो हमारे नए और पुराने दोनों संसद भवनो के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय होगा।