सरकारी आंकड़ों में थोक महंगाई दर 8 साल के निचले स्तर पर चली गई है 2015 में थोक महंगाई दर 4.76 फीसदी थी जो ताजा रिपोर्ट के अनुसार 4.12 फीसदी पर आ गई है इस रिपोर्ट में खुदरा महंगाई दर के आधा फीसदी की बढ़ोतरी की बात कही गई है। महंगाई और मुद्रास्फीति के इन आंकड़ों को आम आदमी समझ पाए यह उसके लिए संभव नहीं है। उसके लिए दाल, आटा, तेल और नमक मिर्च का क्या भाव है और सब्जी किस भाव से मिल रही है उसके आधार पर महंगाई और महंगाई से राहत की बात को समझा जा सकता है। अभी बीते दिनों टमाटर के दामों को लेकर सबसे अधिक चर्चा रही। एक महीने पहले बाजार में टमाटर के दाम 15 से 20 रूपये प्रति किलो थे जो अब 100 रूपये किलो के आसपास हैं। बात अगर दिल्ली और देहरादून की ही की जाए तो यहां टमाटर के भाव 260 रूपये तक पहुंच गए। 40 फीसदी लोग टमाटर का प्रयोग आंशिक रूप से कर रहे हैं जबकि 35 फीसदी लोगों ने टमाटर खरीदना ही बंद कर दिया। भले ही इसका कारण देश के कुछ राज्यों में हो रही अत्याधिक बारिश रही हो जिसके कारण किसानों की फसलें खराब हो गई या फिर उन्हें मंडी तक पहुंचाना मुश्किल हो गया हो लेकिन बीते एक माह से न सिर्फ दाल और सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं अपितु घी, तेल, मसाले सभी के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है यह बढ़ोतरी मामूली नहीं है। यह वृद्धि 10 से 40 फीसदी तक हुई है जिसका सबसे अधिक प्रभाव आम आदमी और गरीबों पर पड़ा है। दालों के दाम 20 से 25 फीसदी बढ़े हैं तो आटा और चावल के दामों में भी 5 से 10 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। दूध, तेल और घी तथा सब्जियों के दामों ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। सरकारी आंकड़ों में यह बढ़ोतरी भले ही आधा फीसदी की बताई जा रही हो लेकिन आम आदमी के लिए इस समय जीवन यापन मुश्किल हो गया है। उसकी समझ में ही नहीं आता कि क्या खाय और क्या खाना छोड़ दे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि बाजार में किसी भी वस्तु की कीमत उसकी मांग और आपूर्ति से ही तय होती है। लेकिन इस आपूर्ति को सिर्फ उसकी पैदावार ही निर्धारित नहीं करती है बाजार में जमाखोरी जैसी प्रवृतियां भी बाजार की कीमतों में अहम भूमिका निभाती हैं और मौसम की मार का प्रभाव भी कीमतों पर पड़ता है। जैसा कि इन दिनों देखा जा रहा है। फसलें कोई रातों—रात तो तैयार हो नहीं सकती है अगर किसी एक सीजन की फसलें खराब हो जाए तो इसका प्रभाव अगली फसल आने तक जारी रहता है आज खाघ वस्तुओं और फल तथा सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही है वह बहुत जल्द सामान्य स्थिति में आ जाएगी इसकी उम्मीद करना भी बेकार है। मानसून आने से पूर्व देश में अच्छे मानसून और अच्छी पैदावार की उम्मीदें जताई जा रही थी लेकिन अब इन उम्मीदों पर पानी फिर चुका है। इसका प्रभाव उस किसान पर भी पड़ेगा जिसकी आमदनी दोगुना करने की बात सरकार करती आई है तथा आम आदमी और गरीब आदमी पर तो पड़ना तय ही है। सरकार चाहे जो दावे करें या फिर कुछ भी कहे आम आदमी को आने वाले समय में भारी महंगाई की मार झेलने को तैयार रहना चाहिए।