तुष्टीकरण की राजनीति

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बीते कुछ समय से उत्तराखंड में लैंड जेहाद तथा लव जेहाद के मुद्दों पर खासी चर्चा हो रही है। राज्य की धामी सरकार के द्वारा राज्य में धार्मिक संरचनाओं की आड़ में किए गए अतिक्रमण पर बुलडोजर की जो कार्यवाही की जा रही है उसे लेकर सूबे के नेताओं द्वारा जिस तरह की बयानबाजी की जा रही है उससे यह साफ हो चुका है कि 2024 के चुनाव में यह अब बड़ा चुनावी मुद्दा रहने वाला है। राज्य सरकार द्वारा अब तक चार—छह मंदिरों सहित लगभग 400 धार्मिक संरचनाओं को तोड़ा जा चुका है। सूबे के नेता ही नहीं साधु—संत भी इस मुद्दे पर छिड़े वाक युद्ध का हिस्सा बन चुके हैं। बीते 2 दिन पूर्व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ द्वारा एक बयान में कहा गया था कि राज्य में लव जेहाद की जो घटनाएं और लैंड जेहाद को लेकर जो समस्याएं पैदा हुई है उसके लिए कांग्रेस जिम्मेवार है यह सब कांग्रेस की देन है। जिसका खामियाजा राज्य के लोगों को भोगना पड़ रहा है। वहीं कांग्रेस के नेताओं द्वारा धामी सरकार की इस कार्यवाही को एकतरफा बताकर संविधान की मूल भावना के खिलाफ काम करने का आरोप लगाए जा रहा है। जहां तक धार्मिक आधार पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाने की बात है तो इसमें न कांग्रेस पीछे हैं और न भाजपा पीछे है। जहां कांग्रेस अल्पसंख्यक व मुस्लिम समुदाय के हित संरक्षण के पक्ष में खड़े होकर इस समुदाय विशेष के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है तो वहीं भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करके हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का रास्ता तैयार कर रही है। राज्य में बात अगर लव जेहाद की की जाए तो अभी हाल में ही पुरोला और चकराता क्षेत्र में दो घटनाएं सामने आई है उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है लेकिन घटनाओं को लेकर जो बयान बाजी नेताओं द्वारा की जा रही है वह इस मुद्दे पर की जाने वाली राजनीति ही है। मुद्दा उतना ही असरकारक होगा जितना अधिक जनाक्रोश भड़केगा इसलिए इसका समाधान निकालने से अधिक जोर अब जनाक्रोश को भड़काने पर किया जा रहा है। आज उत्तरकाशी में यह मुद्दा इस कदर हावी हो चुका है कि न तो आंदोलन प्रदर्शन थमने का नाम ले रहा है और न विरोध प्रदर्शन। अब पुरोला में गैर हिंदू समुदाय की सभी दुकानों पर लगे पोस्टर जिसमें 15 दिन में दुकानें खाली करने का अल्टीमेटम दिया गया है यह बताने के लिए काफी है कि मामला अब शांत होने वाला नहीं है। भले ही भाजपा के नेताओं द्वारा इस समस्या का ठीकरा कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों के सर फोड़ा जा रहा हो लेकिन राज्य में कांग्रेस से ज्यादा लंबे समय तक भाजपा सूबे की सत्ता पर काबिज रही है। अगर कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में इस समस्या को पैदा किया तो सवाल यह भी है कि इससे पहले भाजपा ने भी कभी इस समस्या के समाधान पर कोई काम क्यों नहीं किया। अब 2024 के चुनाव से पूर्व ही उसे राज्य में धर्मांतरण, लैंड जेहाद, लव जेहाद जनसांख्यिकीय असंतुलन जैसी कई समस्याएं एक साथ भला क्यों याद आ गई? कहा जा रहा है कि भाजपा किसी को भी राज्य की संस्कृति और मूल स्वरूप को बिगाड़ने नहीं देगी। लेकिन इन तमाम मुद्दों को लेकर प्रदेश में धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव व टकराव की जो स्थितियां बन रही है जिसके लिए कौन जिम्मेदार है या होगा इस पर कोई विचार करने को तैयार नहीं है। सभी नेता और राजनीतिक दल इन मुद्दों पर अपने अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिशें कर रहे हैं जो समाज व राज्य के हित में नहीं है।

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