आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया

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उत्तराखंड सरकार ने वित्त वर्ष 2023—24 का जो बजट पेश किया है उसमें युवाओं और महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। छोटे राज्य के इस छोटे बजट के आकार में कोई बड़ी वृद्धि किया जाना संभव नहीं था। राज्य में बीते दिनों सामने आए भर्ती घोटालों को लेकर प्रदेश का युवा वर्ग खासा नाराज है। बेरोजगार युवाओं की नाराजगी दूर करने में जुटी धामी सरकार की कोशिशें इस बजट में साफ झलकी हैं। सरकार ने स्वरोजगार और शिक्षा के बजट में भरपूर बढ़ोतरी का प्रयास करते हुए 140 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्तियोंं में भी बढ़ोतरी कर इसके लिए 5 करोड रुपए की व्यवस्था की है। युवाओं को स्वरोजगार के लिए इस बजट में 1715 करोड़ की व्यवस्था की गई है। वही उच्च पदों पर भर्तियों की तैयारी करने के लिए युवाओं को 50 हजार की मदद देने की घोषणा की गई है। बीते कल जब वित्त मंत्री अग्रवाल अपना बजट पेश कर रहे थे तब उन्होंने कहा था कि सरकार भर्तियों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सशक्त नकल विरोधी कानून लाई है जिसमें भ्रष्टाचारियों को उम्र कैद की सजा और उनकी सारी संपत्तियां कुर्क करने की व्यवस्था की गई है। इस बजट में सरकार द्वारा शिक्षा, खेल और युवा कल्याण के लिए 10 हजार 459 करोड़ की व्यवस्था की गई है जो अन्य सभी मदों से अधिक है। वित्त मंत्री ने कल सदन में बजट पेश करते हुए उन तमाम योजनाओं का उल्लेख किया जो महिला उत्थान और विकास व उनके सशक्तिकरण से जुड़ी हैं तो वह यह बताने से भी नहीं चूके कि उनकी सरकार ने राज्य में महिलाओं के लिए नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की है। समाज कल्याण और महिला एवं बाल कल्याण के लिए 2850 करोड़ की व्यवस्था बजट में की गई है। 1905 करोड रुपए सीएम महालक्ष्मी योजना व 250 करोड़ निराश्रित महिलाओं की पेंशन तथा 282 करोड़ नंदा गौरा योजना के लिए रखे गए हैं। एक अहम सवाल यह है कि राज्य गठन के बाद सरकार पर निरंतर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है और अब यह कर्ज इतना अधिक होने वाला है जितना राज्य का बजट है। इस कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए सरकार को भारी—भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है। राज्य सरकार को अपने बजट का बड़ा हिस्सा यानी 26 हजार करोड राज्य कर्मचारियों के वेतन भत्तों और पेंशन पर खर्च करना पड़ता है। 77 हजार करोड़ के बजट में अगर सरकार 26 हजार करोड वेतन भत्तों व पेंशन में और 11.5 हजार करोड़ अगर कर्ज और उसका ब्याज चुकाने में खर्च कर देगी तो सरकार का आधा पैसा तो इसी में चला जाएगा तब विकास कार्यों के लिए चलाई जाने वाली तमाम योजनाओं के हिस्से में जो पैसा आता है वह ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है। यही कारण है कि राज्य की केंद्र पर निर्भरता बनी रहती है व विकास की गति धीमी रहती है।

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