दरोगा भर्ती फर्जीवाडाः 100 से अधिक दरोगा संदेह के दायरे में

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सरकार द्वारा दरोगा भर्ती घोटाले की जांच कराये जाने के दौरान अब विजिलेंस के हाथ कुछ और अहम जानकारियां लगी है। विजिलेंस जांच में पता चल रहा है कि यह कोई छोटा मोटा घोटाला नहीं है इसमें लगभग सौ से अधिक दरोगा शक के दायरे में है। जिन्होने जमीन व जेवर गिरवी रखकर इस परीक्षा को पास किया और पुलिस विभाग में दरोगा बन गये। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य के लोग अलग राज्य मिलने के बाद अपने नेताओं और सरकारों से यह उम्मीद लगाए बैठे रहे कि अब उनके अच्छे दिन आएंगे लेकिन राज्य गठन के बाद पहले दो दशकों में नेताओं और अधिकारियों ने दोनों हाथों से खुली लूट की। राज्य में हो रही इस लूट की हदें तब पार हो गई जब नेताओं और अधिकारियों के साथ माफिया भी इस गठजोड़ का हिस्सा बन गए। अब बात सिर्फ उन वित्तीय घोटालों तक ही सीमित नहीं रही जो पहले एक दशक में देखी गई। माफिया के साथ गठजोड़ के बाद तो ऐसा खेला शुरू हो गया कि जिसकी कल्पना आम आदमी कर भी नहीं सकता था। यूकेएसएसएससी और छात्रवृत्ति जैसे घोटाले इसके बड़े उदाहरण हैं। आयोग का पेपर लीक मामला सामने आया तो दरोगा भर्ती के साथ—साथ अन्य तमाम भर्तियां भी संदेह के दायरे में आ गई। मोटे तौर पर आप यह भी कह सकते हैं या समझ सकते हैं कि वित्त के साथ—साथ वित्तीय संसाधनों और नौकरियों को बेचे जाने के इस खेल में सब कुछ स्याह ही स्याह हो गया और सफेद कुछ शेष ही नहीं बचा। कहा जाता है कि अति का अंत भी निश्चित होता है। इस लूट की अति का भी अंत तो होना ही था यह बात अलग है कि इसकी शुरुआत पेपर लीक मामले से हुई है। पेपर लीक मामले की एसआईटी जांच के दौरान ही यह तथ्य सामने आए की 2015 में जो 339 पुलिस दरोगाओं की भर्ती हुई थी उसमें भी व्यापक स्तर पर धांधली हुई थी। पुलिस भर्ती की गड़बड़ी की जांच क्योंकि पुलिस से नहीं कराई जा सकती थी इसलिए जांच विजिलेंस को सौंपी गई। पेपर लीक मामले की जांच कर रही एसटीएफ ने विजिलेंस को 15 दरोगाओं की सूची सौंप कर बताया था कि इनकी भर्ती ओएमआर सीटों में हेरा फेरी कर की गई है। बताया जा रहा है कि इस भर्ती के 35 दरोगा ऐसे हैं जिन्हें केस डायरी भी लिखनी नहीं आती है वह दूसरों को पैसे देकर केस डायरी लिखवाते हैं। स्पष्ट है कि यह अयोग्य दरोगा फर्जीवाड़े के जरिए दरोगा बने हैं और तो और इनमें से कई तो वर्तमान में चौकियों के इंचार्ज बने बैठे हैं। विजिलेंस जांच में अब ऐसे दरोगाओं की संख्या 100 से अधिक बतायी जा रही है जो फर्जीवाड़ा कर भर्ती हुए है। खैर अब इनके खिलाफ जांच चल रही है तो अब इनकी नौकरी जाना तो तय है, साथ ही वह जेल की हवा भी खा सकते हैं जैसे पेपर लीक मामले के अन्य आरोपी खा रहे हैं। लेकिन भ्रष्टाचार के तमाम मामलों में एक सवाल यह है कि किस किस मामले की जांच कराई जा सकती है और किस—किस को जेल भेजा जा सकता है। शिक्षकों से लेकर पटवारी और दरोंगाओं से लेकर चपरासी तक तमाम भर्तियों में धांधली ही धांधली है। अब तो बस यह देखना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह मुहिम कहां तक पहुंचती है?

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