जोशीमठ संकटः अनियोजित विकास

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विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड राज्य में प्रकृति के साथ अत्यधिक छेड़छाड़ और अनियोजित विकास तथा निर्माण कार्यों के नतीजे कितने प्रलयंकारी हो सकते हैं? यह जोशीमठ के वर्तमान हालात को देखकर अब सभी की समझ में आ जानी चाहिए। धरती का संतुलन बिगाड़ कर आप धरती पर सुरक्षित नहीं रह सकते हैं। जिस विकास के लिए आप धरती का संतुलन बिगाड़ते हैं वह सारा विकास जो आपने सदियों की मेहनत से किया चंद घंटों और दिनों में धराशाई हो जाता है। जोशीमठ जो कल तक एक जीवंत शहर था भू—धसाव के कारण अब खंडहर बनता दिखाई दे रहा है। जोशीमठ की वर्तमान स्थिति को देखकर विशेषज्ञ भी हैरान परेशान हैं उन्हें भी अब कुछ समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है अब यही पता नहीं चल पा रहा है कि कारण क्या है? तो फिर निवारण की बात करना तो बेवकूफी ही होगी। शहर के 600 से अधिक भवन ढाई हजार साल पुराना आदि शंकराचार्य का ज्यार्तिमठ और वह बद्रीनाथ हाईवे जिसे सामरिक दृष्टि से सबसे अधिक महत्व का माना जाता है सब संकट की जद में आ चुके हैं। यह बात किसी को भी हैरान कर सकती है की बिना किसी नियोजन के जोशीमठ में इतने बड़े—बड़े भवन और बहु मंजिलें होटल कैसे बन गए जहां न कोई सीवर सिस्टम है और न कोई ड्रेनेज सिस्टम। यह स्थानीय लोगों का मानना है कि एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना के लिए शहर के नीचे बनाई गई 16 किलोमीटर लंबी सुरंग ही इस बर्बादी के मंजर के लिए जिम्मेदार है लेकिन इसका यह सिर्फ एक अकेला ही कारण नहीं हो सकता है। क्षेत्र में दर्जनभर और छोटी बड़ी विघुत परियोजनाएं चल रही हैं लेकिन इस आपदा काल में अब उन कारणों को ढूंढने में समय बर्बाद नहीं किया जा सकता है क्योंकि जोशीमठ में रहने वाले हजारों लोगों की जिंदगी खतरे में है इस कड़कड़ाती सर्दी के मौसम में उन लोगों के जीवन की सुरक्षा सबसे पहली प्राथमिकता पर आ गई है जो बेघर हैं उन्हें कैसे बचाया जाए। जोशीमठ बचेगा या नहीं या उसे कैसे बचाया जा सकता है यह सोचने के लिए अभी शासन प्रशासन के पास समय नहीं है। यह विडंबना ही है कि जब ऐसी कोई मुसीबत हमारे सर पर आकर खड़ी हो जाती है तब हमारी नींद टूटती है और जैसे ही थोड़ा समय बीता है सब कुछ भुला कर रख दिया जाता है। उत्तरकाशी के विनाशकारी भूकंप और केदारनाथ आपदा की तरह। राज्य में अब तक बनी सरकारें राज्य के विकास का श्रेय लेकर अपनी पीठ थपथपाते रहती हैं। सड़कें बन रही हैं अब रेल दौड़ेगी। सबसे लंबी रेल सुरंग बनेगी होटल और रिसॉर्ट बन रहे हैं। बड़े—बड़े बांध बन रहे हैं लेकिन इसके लिए पहाड़ों का सीना कैसे छलनी किया जा रहा है, कितने पेड़ों को काटा जा रहा है कितनी नदी नालों खालों का प्रवाह रोका जा रहा है? इस तरफ कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है। अभी जोशीमठ की बारी है राज्य के अन्य तमाम शहरों का हाल जोशीमठ जैसा ही है। अगर इस अनियोजित विकास व निर्माण पर तत्काल नहीं सोचा गया तो समूचे पहाड़ को ऐसे ही मंजर देखने को तैयार रहना चाहिए।

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