मित्र पुलिस या अंग्रेज पुलिस

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पूर्व भाजपा विधायक कुंवर प्रणव सिंह चौंपियन के खिलाफ एसएसपी दून के निर्देश पर पुलिस ने सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज किया है। एसएसपी का कहना है कि उन्होंने थाने में जाकर हंगामा किया। दरअसल इस पूरे मामले को समझने के लिए उन तमाम वीडियो क्लिप्स को देखा जाना जरूरी है, जिसमें डालनवाला इंस्पेक्टर द्वारा चौंपियन के बेटे की कार रूकवा कर उसे कहा जाता है ट्टओ बे नीचे उतर, मैं तुझे भी जानता हूं और तेरे बाप को भी जानता हूं। गनीमत है चैम्पियन के बेटे ने शराब नहीं पी रखी थी और थाने जाकर चैम्पियन जब इंस्पेक्टर का मेडिकल कराने और शराब के नशे में होने का आरोप लगा रहे थे तब चैम्पियन ने भी नहीं पी रखी थी वरना पुलिस उन्हें शराब पीकर वाहन चलाने और थाने में पुलिस बदसलूकी करने तथा हंगामा करने शांति भंग करने तथा पुलिस के काम में बाधा डालने जैसे कितने आरोप लगाकर उन्हें हवालात में डाल देती। इंस्पेक्टर पर अगर वह ड्यूटी पर शराब पीने का आरोप लगा रहे थे और अपना और इंस्पेक्टर का मेडिकल कराने की बात कह रही थे तो पुलिस इंस्पेक्टर ने इसका साहस क्यों नहीं दिखाया अगर उन्होंने शराब नहीं पी रखी थी। चैम्पियन को लेकर अस्पताल जाते और अपने साथ उनका भी मेडिकल कराते। क्या हम जिसे मित्र पुलिस कहते हैं उसका आम आदमी के साथ बातचीत का तरीका यही होना चाहिए कि मैं तुझे भी जानता हूं और तेरे बाप को भी जानता हूं। और चैम्पियन इस अभद्रता का विरोध कर रहे थे तो क्या यह पुलिस के काम में बाधा डालना है। क्या पुलिस एक आम नागरिक के साथ कैसा भी व्यवहार करें आम आदमी को उसके विरोध करने का भी अधिकार नहीं है गनीमत है कि यह घटना एक पूर्व मंत्री और विधायक और उसके बेटे के साथ घटित हुई अगर यह घटना किसी आम आदमी के साथ होती तो पुलिस का रवैया क्या होता इसका भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। पुलिस अगर किसी बेगुनाह को पीटे और पिटने वाला अगर पुलिस की लाठी को पकड़ ले तो यह सरकारी काम में बाधा डालना होता है, फिर ऐसी किसी पुलिस को मित्र पुलिस नहीं अंग्रेज पुलिस ही कहा जा सकता है। ऐसा लगता है कि आजादी के 75 साल बाद भी देश की पुलिस अंग्रेज पुलिस ही बनी हुई है। अभी बीते दिनों हल्द्वानी के एक व्यवसाई जो अपनी किसी शिकायत को लेकर थाने पहुंचे थे वहां मौजूद दरोगा द्वारा उनके साथ ही मारपीट करने का मामला प्रकाश में आया था जिस पर खुद डीजीपी अशोक कुमार ने संज्ञान लेते हुए दरोगा के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए थे। कुल मिलाकर पुलिस की इस कार्यप्रणाली को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में एक बात और महत्वपूर्ण है चैम्पियन साहब को यह समझ लेना चाहिए कि अब वह न मंत्री है और न ही विधायक और यह व्यवस्था जिसकी लाठी और उसकी भ्ौंस से चलती है और चलती रहेगी? जिसे अगर पीएम मोदी नहीं बदल सके तो आपकी क्या बिसात है।

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