नेतागिरी निजी हितों की

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उत्तराखंड के पूर्व विधायकों द्वारा एक मंच पर आकर एक गैर राजनीतिक संगठन बना लिया गया है। सवाल यह है कि इस गैर राजनीतिक संगठन का सुझाव उन्हें स्पीकर ऋतु खंडूरी द्वारा दिया गया जिसके बारे में उन्होंने खुद जानकारी देते हुए बताया कि इन पूर्व विधायकों द्वारा सरकार के काम और प्रदेश के विकास में सहयोग की इच्छा जताई गई थी। अगर प्रदेश के पूर्व विधायक शासन प्रशासन को अपने अनुभवों का लाभ देना चाहते हैं तो इससे सुखद राज्य हित में भला और क्या हो सकता है? लेकिन इसके साथ ही इन पूर्व विधायकों के गैर राजनीतिक संगठन द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को एक अपना सात सूत्रीय मांग पत्र भी सौंपा गया जिसमें इन पूर्व विधायकों ने अपनी पेंशन दोगुना करने, पेट्रोल—डीजल व्यय दोगुना करने, अपना और अपने परिवार को कैशलेस इलाज की सुविधा देने, भवन व वाहनों के लिए ब्याज मुक्त ऋण देने, सरकारी आवास व गेस्ट हाउस में फ्री आवास सुविधा देने की मांग की गई है। उनका तर्क है कि जब अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद भी काम पर रखा जा सकता है तो विधायकों को चुनाव हारने पर दरकिनार क्यों कर दिया जाता है। इस मामले में सबसे पहला सवाल यह है कि क्या इन पूर्व विधायकों का संगठन का गठन अपनी सुख—सुविधाओं में वृद्धि के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए किया गया है या फिर सरकार के कामकाज में सहयोग और राज्य के विकास के लिए किया गया है। उनके मांग पत्र से ही इन पूर्व विधायकों की मंशा को समझा जा सकता है। दूसरा सवाल यह है कि क्या कोई नेता कभी रिटायर्ड होता है? जिन्हें पूर्व विधायक कहा जाता है वह चुनाव हारने वाले विधायक होते हैं जो हारने के बाद फिर चुनाव भी लड़ कर विधायक बन जाते हैं अब सवाल उठता है इन पूर्व विधायकों को मिलने वाली सुविधाओं का। उत्तराखंड राज्य में वर्तमान में 95 पूर्व विधायक है जिन्हें सरकारी खजाने से हर माह 52 लाख 73 हजार 900 रुपए पेंशन दी जा रही है। इन पूर्व विधायकों की पेंशन एक आईएएस अधिकारी से भी अधिक है इन पूर्व विधायकों को 234 फीसदी डीए दिया जाता है। राम सिंह सैनी जो पूर्व विधायक है उनकी पेंशन 91 हजार रूपये, 7 विधायकों को 40 हजार और 40 विधायकों को 45 हजार रूपये महीने से भी अधिक पेंशन हर माह दी जा रही है। पेट्रोल डीजल आदि की अन्य सुविधाएं अलग रही। एक दिन का विधायक भी 40 हजार रूपये पेंशन पा सकता है भले ही उसने 12 वीं पास न किया हो। इसके बावजूद भी इन पूर्व विधायकों को अपने लिए और अधिक सुविधाओं तथा पेंशन भत्तों की जरूरत है। ऐसा लगता है कि राज्य के पूर्व विधायकों को सरकारी सुविधाओं की जरूरत उन लोगों से ज्यादा है जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। जिस शासन—प्रशासन को अपने अनुभवों का लाभ देकर प्रदेश के विकास में सहयोग की बात पूर्व विधायक कर रहे हैं वह मिथ्या है असल में वह अपना ही विकास चाहते हैं।

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