आज अगर हेट स्पीच अथवा सांप्रदायिक हिंसा की वारदातें चर्चाओं के केंद्र में है तो यह बेवजह नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कल तीन राज्यों में हुई घटनाओं की सुनवाई करते हुए अगर यह कहा गया कि यह सब जानते हैं कि यह क्यों हो रहा है और इसे कैसे रोका जा सकता है तो इसमें असत्य कुछ भी नहीं है अदालत ने जब उत्तराखंड को सख्त हिदायत देते हुए यह कह दिया गया कि अगर आगे ऐसा कुछ भी होता है तो उसके लिए मुख्य सचिव, गृह सचिव जैसे अधिकारी जिम्मेदार होंगे तो आनन—फानन में हरकत में आए अधिकारियों ने भगवानपुर के गांव टांडा जलालपुर में आज होने वाली हिंदू महापंचायत के आयोजन पर रोक लगानी पड़ी और आयोजकों को हिरासत में लेकर टेंट—तंबू उखाड़ फेंके गए बात चाहे राजनीतिक हलके की हो या फिर सामाजिक हलके की दो बातें हमेशा ही सामानान्तर रूप से जारी रहती हैं। एक बात है नकारात्मक रवैया और सोच के साथ लक्ष्य प्राप्त करने की तो दूसरी सोच है सकारात्मक सोच व बयान और कृत्य के साथ आगे बढ़ने की। देश की राजनीति और समाज दोनों पर मंडल यानी जातीय आधार पर आरक्षण का लाभ और कमंडल यानी मंदिर और मस्जिद के जरिए हिंदू—मुस्लिमों को बांटने की यह दोनों ही तथ्य देश और समाज तथा राजनीति के लिए अपघाती रहे हैं लेकिन समाज और राजनीति में इनकी जड़ें इतनी गहरी पैठ बना चुकी है कि हर जगह हर मुद्दे पर सिर्फ टकराव है और तकरार है। सामाजिक विभाजन की सीमा रेखाएं खींचकर भले ही किसी वर्ग विशेष या राजनीतिक दल को इसका अधिक लाभ मिल जाए लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं हो सकते हैं। सामाजिक अशांति और टकराव की स्थिति में कोई देश विकास की सीढ़ियां नहीं कर रहा। अभी बीते दिनों में लिंचिंग की घटनाओं से लेकर धार्मिक जलसे—जुलुसोें में हिंसा तथा पथराव की जो घटनाएं सामने आई हैं उन्हें लेकर अदालत की चिंता स्वाभाविक है आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द की दिशा में यह अदालत की एक सकारात्मक पहल है। धर्म के ठेकेदारों द्वारा एक दूसरे समुदाय के लोगों को लेकर जिस तरह का विष वमन किया जा रहा है उससे भले ही किसी का कुछ भला न हो लेकिन इस नफरती बयानों से समाज में विघटन और विभाजन की सीमा रेखाएं जरूर खिंच रही हैं एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर इस देश में अमन चैन और सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है। समाज और प्रशासन ही अगर उन्माद फैलाने का काम करने लगेंगे तो फिर भला हम कैसे मजबूत राष्ट्र और सुखी समाज की कल्पना कर सकते हैं। निश्चित तौर पर अदालत का यह फैसला कुछ लोगों को रुचिकर न लग रहा हो लेकिन यह फैसला राष्ट्र व समाज हित में महत्वपूर्ण है। देश में किसी भी कोने में अगर किसी के द्वारा भी नफरत फैलाने के प्रयास किए जाते हैं तो ऐसे लोगों के खिलाफ अदालतों को और सख्त होने की जरूरत है। सांप्रदायिक सद्भाव सभी की जिम्मेवारी है यह सुनिश्चित किया जाना वर्तमान में सबसे ज्यादा जरूरी है।