महिलाओं के आरक्षण की जंग

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उत्तराखंड सरकार द्वारा सूबे की आधी आबादी(महिलाओं)को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी क्ष्ौतिज आरक्षण देने के लिए 24 जून 2006 में जो शासनादेश लाया गया था उसे गलत ठहराते हुए नैनीताल हाई कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई। जिसके खिलाफ राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एसएलवी दायर की जा चुकी है। सरकार और अदालत के बीच चल रही जंग के बीच यूपी के एक याची की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को पीसीएस परीक्षा की आरक्षित पदों के एससी, ओबीसी व ईडब्ल्यूएस के पदों के लिए बिना आरक्षण कट ऑफ अंक सूची जारी करने के निर्देश दिए गए हैं जिसका सीधा मतलब है कि महिलाओं के लिए दिए जाने वाला आरक्षण कोटा समाप्त। कोर्ट द्वारा महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण पर अपने रोक के फैसले को बरकरार रखते हुए सरकार से 4 सप्ताह में जवाब देने को कहा गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट द्वारा 30 फीसदी इस आरक्षण पर रोक के बाद भी पीसीएस की प्री परीक्षा के अंक कट ऑफ सूची में 30 प्रतिशत आरक्षण को दिया गया था। कोर्ट ने अब आयोग को दूसरी सूची जारी करने के निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में लगाई जाने वाली रोक और अब एक बार फिर उस रोक को बरकरार रखे जाने के निर्देश दिए जाने के बावजूद भी सरकार न सिर्फ इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है अपितु मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अभी भी यही कह रहे हैं कि उत्तराखंड की बेटियों के हित की इस लड़ाई को उनकी सरकार पूरी ताकत के साथ लड़ेगी, यही नहीं उनका यह भी कहना है कि अभी तक 2006 के शासनादेश के आधार पर सूबे की महिलाओं को यह 30 फीसदी क्ष्ौतिज आरक्षण की सुविधा मिल रही थी अब उनकी सरकार इस पर अध्यादेश लाने पर भी विचार कर रही है। अध्यादेश राज्य सरकार का एक ऐसा विशेषाधिकार है जिसके प्रयोग से वह किसी भी समस्या को कुछ समय तक टाले रख सकती है आपको याद हुआ जब हाईकोर्ट के आदेशों पर राजधानी दून में अवैध अतिक्रमण व बस्तियों पर बुलडोजर चलना शुरू हुआ और सरकार इसे रोकने में नाकाम साबित हो रही थी तो इन अवैध कालोनियों को बचाने के लिए सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी जिसमें इन्हें समयबद्ध तरीके से नियमितीकरण की बात की गई यह अलग बात है कि बुलडोजर रुकने के बाद आज तक सरकार न बेघरों को घर दे सकी है न अवैध बस्तियों के नियमितीकरण की दिशा में दो कदम आगे बढ़ सकी। महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण पर भी सरकार अध्यादेश का सहारा ले सकती है। इससे अगर और कुछ नहीं होगा तो 2024 के चुनाव तक इस 30 प्रतिशत आरक्षण को लागू रखकर महिला मतदाताओं की सहानुभूति तो मिल ही जाएगी। दरअसल यह वोट की राजनीति से जुड़ा मुद्दा है यही कारण है कि सरकार इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। सवाल यह है कि 2006 से अब तक इस बारे में क्यों कुछ नहीं सोचा गया?

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