डॉ राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर राजनीति के अखाड़े में उतरने वाले समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह का बीते कल निधन हो गया। उनके निधन की खबर के बाद गुडगांव से लेकर उनके पैतृक आवास सैफई गांव तक उनके समर्थकों और शुभचिंतकों का जो जनसमूह उनके अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ रहा है वह मुलायम सिंह की लोकप्रियता का साक्ष्य है जो उन्होंने अपने साढ़े पांच दशक लंबे राजनीतिक जीवन में अर्जित की। उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्रीय राजनीति के केंद्र बिंदु रहे मुलायम सिंह यादव के लिए यह उपलब्धि इसलिए और भी अधिक बड़ी हो जाती है क्योंकि वह एक साधारण किसान परिवार और गांव के खेत खलिहानों की मिटृी से निकलकर उस मुकाम तक पहुंचे थे जिसके बारे में एक आम आदमी कल्पना अभी नहीं कर सकता है। 1967 में वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और 8 बार विधायक चुने गए तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री बने और संयुक्त मोर्चा कि केंद्र सरकार में उन्होंने देश के रक्षा मंत्री का पद भी संभाला। चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी चौधरी अजीत सिंह को राजनीतिक अखाड़े में पछाड़कर वह यूपी के सीएम बने थे। वही वह मुलायम सिंह ही थे जिन्होंने सोनिया गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनने से रोकने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी। उनके राजनीतिक जीवन में अनेक उतार—चढ़ाव भी आए लेकिन वह कभी अपने विरोधियों के सामने नहीं झुके। उनके व्यक्तित्व की एक खास खूबी यह भी थी कि वह अपने प्रतिद्वंदियों से कटूता कभी नहीं रखते थे। उन्होंने इमरजेंसी के बाद कांग्रेस के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी और भाजपा के खिलाफ भी मोर्चा खोला लेकिन दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं के साथ उनका संवाद हमेशा सौहार्दपूर्ण ही बना रहा। यही कारण है कि उनके निधन की खबर पर सभी दलों के नेताओं ने न सिर्फ गहरी शोक संवेदनाएं व्यक्त की बल्कि उनके अंतिम संस्कार में शिरकत भी की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो उनके निधन की खबर की बात जनसभा में करते हुए अति भावुक दिखे। उनका कहना था कि संसद में खड़े होकर मुलायम सिंह का यह कहना कि आप सबको साथ लेकर चलते हैं इसलिए हम चाहते हैं कि आप फिर जीते और फिर प्रधानमंत्री बने, इतना बड़ा दिल भला किसका हो सकता है। मुलायम सिंह ने अपने दौर की राजनीति में समाजवाद की नई परिभाषा गढ़ी, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के हित में उनका यह कहना कि उनकी सरकार एक क्या 10 बार चली जाए लेकिन वह अपना फैसला नहीं बदलेंगे तथा जिन नीतियों के कारण उन्हें मुल्ला मुलायम सिंह जैसे नाम भी मिले, लेकिन वह अपनी बात व विचारधारा पर अड़े रहे। उनकी लोहिया वाद की राजनीति पर परिवारवाद के भी आरोप लगे जिनका खामियाजा उन्हें और सपा को उठाना पड़ा लेकिन इस सबके बीच ही वह सामाजिक समानता और दलित तथा पिछड़ों के लिए समर्पित नेता की छवि लेकर दुनिया से विदा हुए हैं जो उनकी सबसे बड़ी सफलता है।