स्वच्छता की इंसानी जीवन में क्या अहमियत है? भले ही इसके बारे में भारतीय लोग दुनिया भर से अधिक जानते हो लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक स्वच्छता की चाहे जितनी भी पाठशाला खोली गई हो लेकिन इन पाठशालाओं में देश के लोग स्वच्छता का ककहरा भी नहीं सीख सकते हैं यह एक ऐसा सत्य है जिसे स्वीकार करने का साहस तक हममें नहीं है। बीते कल एक समाचार आया कि उत्तराखंड के हरिद्वार जिसे हम अक्सर धर्म नगरी के नाम से संबोधित करते हैं स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में गंगा टाउन श्रेणी शहरों में पहले स्थान पर आया है। राज्य के नगर विकास मंत्री प्रेमचंद्र को इसके लिए राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्रदान किए जाने की तस्वीरें शायद आपने टीवी पर देखी हो। इस सर्वे के नतीजे और इसके लिए दिए गए पुरस्कार पर हर उस आदमी को जरूर थोड़ी सी हैरानगी हुई होगी जो कभी हरिद्वार गया होगा या हरिद्वार घुमा होगा। मीडिया में यह खबर जिन शीर्षको से छपी है वह है ट्टसबसे गंदा शहर सबसे साफ, दरअसल ऐसे चमत्कार सिर्फ भारत में ही संभव है जहां झूठ को भी सच साबित कर दिया जाता है। और कागजों में जो सबसे काला होता है उसे सबसे सफेद और जो सफेद होता है उसे सबसे काला साबित कर दिया जाता है। अभी स्मार्ट सिटी योजना पर आए एक सर्वे में देहरादून को भी अच्छी रैंकिंग मिली थी जिसकी बदहाली के समाचार आप आए दिन पढ़ रहे होंगे। केंद्र की मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए अरबों रुपया खर्च किया गया है शायद सरकारी कागजों में भारत खुले में शौच से मुक्त भी हो चुका है लेकिन अगर आप भारतीय हैं तो अवश्य ही इस सच को जानते होंगे कि भारत खुले में शौच से कितना मुक्त हो सका है। अभी इत्तेफाक से हमें कांवड़ मेले के दौरान हरिद्वार जाने का मौका मिला। हर की पैड़ी से शॉर्टकट की तलाश में हाईवे तक आने के लिए खुद को तैयार किया लेकिन यह आधा किलोमीटर का सफर जीवन भर याद रखने लायक था कि गंगा घाट से सटे मैदानों में मल भरा पड़ा था और पैर रखने के लिए भी जगह नहीं थी। राजधानी देहरादून के घंटाघर की भी बात हम आपसे कर लेते हैं जहां सुबह सवेरे दिहाड़ी मजदूरों का मेला लगता है सड़क और सड़क किनारे आपको सिर्फ थूक और पान मसालों की पीक के अलावा कुछ नहीं मिलेगा अगर देखभाल कर पैर नहीं रखा तो थूक और कफ पैरों में न लगे यह हो ही नहीं सकता। गनीमत है कि हम भारत में रह रहे हैं जहां हमें कहीं भी मल—मूत्र त्यागने और थूकने से लेकर किसी भी तरह की गंदगी फैलाने की खुली छूट है। किसी पश्चिम देश में रह रहे होते तो न जाने कितनी बार हवालात की हवा खानी पड़ती। देश के लोग गंदगी फैला कर और गंदगी में रहकर खुश हैं तथा देश के नेता साल में एक बार हाथों में झाड़ू लेकर सड़क पर सफाई करने की फोटो खिंचवा कर खुश होते हैं रही बात स्वच्छता की और स्वच्छता सम्मानोंं की उससे क्या होता है, हो तो भी ठीक और न हो तो भी ठीक