हिमालय जल और वायु का है प्रदाता स्रोत है जिसके बिना आप धरती पर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। जो प्राकृतिक संपदा इतनी महत्वपूर्ण हो उसके संरक्षण के प्रति हर किसी को संवेदनशील होने की जरूरत है लेकिन यह सच एक विडंबना है कि इसे लेकर हम कभी गंभीर नहीं रहे हैं। बीते कई दशकों से जो ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दे चर्चाओं के केंद्र में हैं उसके पीछे सबसे बड़ा कारण हमारी हिमालय के संरक्षण को लेकर बरती गई लापरवाही ही है। जिस तरह से आदमी के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उन सभी पांच तत्वों का संतुलन जरूरी होता है जिनसे शरीर की संरचना होती है ठीक उसी तरह प्रकृति के स्वास्थ्य के लिए भी वैसा ही संतुलन जरूरी है। हिमालय के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने की हमारे द्वारा बातें तो सदियों से की जाती रही हैं लेकिन उन पर अमल आज भी नहीं हो रहा है। हर साल हमारे देश में हिमालय दिवस मनाया जाता है। खासकर हिमालई राज्यों में हर एक हिमालय दिवस पर लाखों कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। व्याख्यान होते हैं पर्यावरणविद और सामाजिक संस्थानों के पदाधिकारी लंबे लंबे भाषण देते हैं लेकिन इस पल्ले झाड़ कथा का कोई लाभ हिमालय की सेहत को नहीं हो पाता है। अगर इसका कोई लाभ हुआ होता तो आज पर्यावरण संबंधी जिन समस्याओं का सामना समाज को करना पड़ रहा है कदाचित भी स्थिति ऐसी नहीं हो सकती थी। आज अगर धरती आग का गोला बनती जा रही है और पर्यावरण इस कदर दूषित होता जा रहा है कि जहां सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है। जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और हमें केदारनाथ में 2013 में आई प्राकृतिक आपदा जैसी स्थितियों से दो—चार होना पड़ रहा है तो इसका कारण वह प्राकृतिक असंतुलन ही है जो हिमालय के साथ की जा रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है। हमने इस साल केदारनाथ धाम यात्रा शुरू होने के बाद देखा था कि केदारघाटी को पर्यटकों द्वारा किस तरह गंदगी और प्लास्टिक के कचरे से पाट दिया गया था। जिस कारण पीएम मोदी को श्रद्धालुओं से अपील करनी पड़ी थी। यह तो महज एक उदाहरण भर हमारी लापरवाही का है करोड़ों पर्यटक और पर्वतारोही हिमालय पर कितना कचरा और गंदगी फैला चुके हैं इसका आकलन कर पाना भी मुश्किल है। बीते कुछ दिनों से विकास की अंधी दौड़ ने हिमालय का सीना छलनी कर दिया है। पहाड़ काटकर सुरंगे बनाई जा रही है और जंगल का सफाया करके सड़कें जिन पर फर्राटा जिंदगी के दौड़ने की बात कही जा रही है। इस दौर में किसी के भी पास यह सोचने समझने का समय नहीं है कि जब जिंदगी ही नहीं रहेगी तो इस विकास की सड़क पर कौन दौड़ेगा। हिमालय का संरक्षण कैसे संभव है उसके लिए क्या किया जाना जरूरी है? अगर अभी इस पर गंभीरता से नहीं सोचा तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। हिमालय हमारी विरासत ही नहीं जीवन रेखा भी है। हिमालय है तो हम हैं अगर हिमालय नहीं रहेगा तो हम भी नहीं रहेंगे।