चिंताजनक स्थिति में पहुंची महंगाई

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देश में बढ़ती महंगाई अब चिंता का विषय बनती जा रही है। पिछले तीन महीनों से लगातार बढ़ रही महंगाई ने अब सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और वह सारे अनुमानों को गलत साबित करते हुए 8—9 फीसदी से भी ऊपर निकल चुकी है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अब केंद्रीय बैंकों को अपनी मौद्रिक नीति की प्राथमिकताओं की बजाय मुद्रा स्थिति प्रबंधन पर ध्यान देने की जरूरत है। खुदरा महंगाई की दर में इस अत्याशित वृद्धि का सबसे अधिक प्रभाव उस गरीब तबके पर पड़ रहा है जिनकी आय के संसाधन सीमित हैं। दूसरी खास बात यह है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर अधिक बढ़ी है जहंा मजदूर और किसानों की संख्या अधिक है। खाघ वस्तुओं की कीमतों पर सबसे ज्यादा प्रभाव तेल की कीमतों का पड़ रहा है। इसका कारण भले ही रूस—यूक्रेन युद्ध को बताया जा रहा हो या अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में हुई रिकॉर्ड वृद्धि, कुल मिलाकर बढ़ती महंगाई द्वारा सभी के जीवन को प्रभावित किया गया है। देश के अधिकांश शहरों में पेट्रोल सौ के पार आ चुका है वहीं डीजल भी सौ के आसपास ही है। जिसके दाम 125 व 120 के आस—पास तक पहुंचने की संभावनाएं जताई जा रही है। सीधे तौर पर कहे तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 15 से 20 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है जो अत्यधिक से भी अधिक है। इसका सीधा असर परिवहन, उघोग और कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक अब सामान्य वर्ग के परिवार पर इस महंगाई का प्रभाव 5 से 7 हजार रुपए प्रतिमाह तक पड़ रहा है। घर का खर्च बढ़ने से उनकी बचत कम हो रही है वही निम्न आय वर्ग के लोगों को अब जीवन यापन के लिए सस्ते उत्पादों से काम चलाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अभी जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं उन चुनावों में तमाम गैर भाजपाई राजनीतिक दलों द्वारा इस बढ़ती महंगाई के मुद्दे को उछाला गया था लेकिन आम जनता ने इसे कोई खास तवज्जो नहीं दी अब आम जनता में अगर किसी मुद्दे की चर्चा है तो वह सिर्फ बढ़ती महंगाई ही है। बात अगर उत्तराखंड की की जाए तो अन्य मैदानी राज्यों की तुलना में यहां महंगाई सबसे ज्यादा है। जिसका कारण है खाघ वस्तुओं का अन्य राज्यों से आयात होना। माल भाड़ा बढ़ने के कारण पहाड़ पर खाघ वस्तुओं की कीमतों का अपेक्षाकृत अधिक होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि जहां परिवहन किराया और भाड़ा बढ़ता जा रहा है वही होटल किराए और खाघ वस्तुओं की कीमतों में 20 से 25 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। सत्ता में बैठे लोग भले ही इस समस्या को सुनने और इस पर चर्चा करने से इंकार कर रहे हो लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बढ़ती महंगाई को सहने की क्षमता जब समाप्त हो जाती है तो फिर स्थिति श्रीलंका जैसी ही होती है जहां लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस तरफ ध्यान दें और हालात को बेकाबू न होने दें।

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