नकल विरोधी कानून के प्रचार में जुटी भाजपा
चंपावत में निकाली नकल विरोधी कानून के समर्थन में रैली
देहरादून/चंपावत। उत्तराखंड राज्य की भर्तियों में धांधली का मुद्दा अब भाजपा के लिए कोई मुद्दा नहीं रह गया है। भाजपा के लिए अब धामी सरकार द्वारा लाया गया नया नकल विरोधी कानून उससे भी बड़ा मुद्दा बन कर रह गया है। इसकी तस्दीक सीएम धामी के चंपावत दौरे के दौरान आज यहां नकल विरोधी कानून के समर्थन में निकाली गई वह रैली है जिसमें युवाओं की भारी भीड़ जुटाई गई।
प्रदेश भाजपा ने भर्ती घोटालों के विरोध में किए जाने वाले धरने और प्रदर्शनों तथा सीबीआई जांच की मांग की काट ढूंढ लिया गया है। भाजपा अब इसके जवाब में नकल विरोधी कानून के समर्थन में रैलियां निकालेगी। चंपावत के दो दिवसीय दौरे पर गए सीएम धामी के सामने भाजपा नेताओं ने यहां जो नकल विरोधी कानून के समर्थन में रैली निकाली उसमें न सिर्फ युवाओं की अच्छी खासी भीड़ देखी गई बल्कि यहां मीडिया के सामने यह युवा सीएम के इस प्रयास की तारीफ भी करते हुए दिखे।
कुछ युवा छात्र—छात्राओं को इस दौरान टीवी चैनलों के पत्रकारों से बातचीत करते हुए दिखाया गया है जो कह रहे हैं कि पहले भर्ती परीक्षाओं में नकल होती थी, पेपर लीक हो जाते थे जिसके कारण वह हताश थे और उन्होंने सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास करना ही बंद कर दिया था लेकिन अब सरकार ने जो सख्त नकल विरोधी कानून बनाया है उससे उन्हें भविष्य की अच्छी संभावनाएं दिखने लगी हैं और उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां भी शुरू कर दी है। उधर मुख्यमंत्री धामी भी अपने इस नकल विरोधी कानून को लेकर यह कहते दिख रहे हैं कि अब भर्तियों में नकल करने कराने की बात तो दूर रही नकल की बात भी कोई नहीं सोच सकता है।
दरअसल सीएम धामी ने राजनीति का जो एक नया तरीका तलाश किया है वह जहां क्षेत्रीय दौरे पर जाते हैं सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक पर अकेले ही निकल पड़ते हैं। आज चंपावत में उनकी मॉर्निंग वॉक को कुछ चैनलों ने कवर किया जब वह चाय के खोखे पर चाय पी रहे थे या सड़क पर घूम रहे थे अथवा आते जाते लोगों से बात कर रहे थे। तभी उनसे उनके इस नकल विरोधी कानून पर टीवी पत्रकार ने पूछा था जिसके जवाब में उन्होंने उक्त बयान दिया।
एक तरफ जब भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच की मांग और लाठीचार्ज के विरोध में प्रदेश के युवा आंदोलित है वही इसके समानांतर सरकार का नकल विरोधी कानून का प्रचार अपनी पीठ खुद थपथपाने जैसा ही दिखता है। प्रायोजित प्रचार के जरिए भर्ती घोटालों के विरोध को दबाने का यह प्रयास किस तरह की राजनीति है इसे सिर्फ नेता की समझ सकते हैं।