अधिकार और अंकुश के बीच कर्तव्य

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उत्तराखंड राज्य के मंत्रियों ने एक बार फिर सचिवों का सीआर लिखने का अधिकार देने की मांग मुख्यमंत्री धामी से की है। इन मंत्रियों का कहना है कि सूबे की नौकरशाही पर लगाम लगाया जाना जरूरी है। नौकरशाहों द्वारा मनमाने तरीके से काम करने और मंत्रियों और विधायकों के आदेशों और बातों को न मानने के आरोप भले ही कोई नई बात न सही लेकिन क्या जरूरी है और क्या नहीं यह एक बड़ा सवाल है। अधिकारों की जहां तक बात है किसी भी क्षेत्र, विभाग या फिर घर—परिवार की बात करें तो अधिकार सभी को अच्छे लगते हैं और सभी की चाहत होती हैं कि उनके पास अपरमित अधिकार हो, इतने अधिक अधिकार हों कि वही सब पर हुकूमत करें उनका काम सिर्फ हुकुम देने का हो बाकी सब उनके हुकुम के गुलाम हो। बात अगर अंकुश की करे तो जिसे नेता लगाम लगाने की बात कहते हैं वह किसी को भी पसंद नहीं है। न कोई कर्मचारी और न कोई अधिकारी यह चाहता है कि उस पर कोई पाबंदी हो। लेकिन जब बात कर्तव्यों की आती है तो सभी कन्नी काटते दिखते हैं। यह अधिकारों और लगाम (अंकुश) की जो लड़ाई है उसके मूल में यही है कि कोई भी अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं करता है। भले ही संवैधानिक और सामाजिक आधार पर अधिकारों और कर्तव्यों को बखूबी परिभाषित किया गया हो लेकिन हमें सिर्फ अधिकारों से ही सरोकार होता है। यह ठीक है कि कुछ राज्यों में इस तरह की व्यवस्थाएं हैं कि मंत्रियों को अधिकारियों की सीआर लिखने का अधिकार है। उत्तराखंड में एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल में ऐसी व्यवस्था रही थी तथा मंत्रियों ने त्रिवेंद्र के नेतृत्व वाली सरकार के समय भी यह मांग उठाई थी लेकिन यह भी देखने योग्य है कि एक आईएएस अधिकारी की सीआर एक दसवीं पास मंत्री अगर लिख रहा हो तो उस अधिकारी को क्या और कैसा लगेगा। मंत्रियों और नेताओं द्वारा आजादी के 75 सालों में कभी एक बार भी इस बात की मांग क्यों नहीं की गई या मांग क्यों नहीं उठाई गई कि बिना हायर क्वालिफिकेशन के कोई चुनाव नहीं लड़ सकेगा। देश के नेताओं को चाहिए कि वह संविधान में संशोधन के जरिए ऐसी व्यवस्था करें कि कोई एक भी अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा अथवा आपराधिक मामलों में लिप्त प्रत्याशी कोई चुनाव न लड़ सके। यह बात जैसे नेताओं को अच्छी नहीं लग सकती है वैसे ही मंत्रियों की यह मांग भी अच्छी नहीं लग सकती। रही कर्तव्यों के निर्वहन की बात तो अधिकारियों को इस पर और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। बिना अधिकारियों की सार्थक और उत्कृष्ट प्रणाली के किसी भी क्षेत्र, राज्य या समाज का समुचित विकास संभव नहीं है। इन अधिकारियों को भी सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों के साथ सहयोग की जरूरत है। बजाय अधिकारों और कर्तव्यों अथवा अंकुश और नकेल कसने जैसे कवायतों में पड़ने की। जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल से ही बेहतर प्रमाण निकल सकते हैं।

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