फरीदाबाद के सूरजकुंड में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा देशभर के सभी राज्यों के गृह मंत्रियों का सम्मेलन बुलाया गया जिसमें देश की आंतरिक सुरक्षा जैसे अति संवेदनशील मुद्दे पर चिंतन मंथन किया जा रहा है। सवाल यह है कि केंद्र सरकार को इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई। इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि देश में सत्ता विरोधी और देश विरोधी ताकतों की बढ़ती सक्रियता। बीते कुछ सालों से जिस तरह कुछ अराजक तत्वों द्वारा सरकार और समाज विरोधी गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है वह किसी से भी छिपा नहीं है। बात सिर्फ किसी व्यक्ति या संगठन के आतंकी गतिविधियों से जुड़े होने तक सीमित नहीं है अराजक तत्वों द्वारा पूरे देश में असामाजिक गतिविधियां चलाई जा रही है जिसका उद्देश्य सामाजिक अशांति फैलाना है। बीते कुछ सालों में जगह—जगह से देश विरोधी नारों की गूंज सुनाई पड़ती है वह बेवजह नहीं है। बाहरी देशों से संरक्षण प्राप्त कुछ संगठन और व्यक्तियों द्वारा एक सोची—समझी रणनीति और षड्यंत्र के तहत यह काम किए जा रहे हैं। बात चाहे सीएए के विरोध की हो या किसानों के आंदोलन की अथवा दिल्ली और कानपुर के दंगों की यह राष्ट्र विरोधी ताकतें हर जगह घुस जाती हैं। अभी बीते दिनों हिजाब को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ था या फिर भाजपा प्रवक्ता के बयान के बाद सर तन से जुदा का जो नारा प्रचलन में आया या फिर विश्वविघालयों तक में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे सुनाई दिए वह आम भारतीय लोगों द्वारा नहीं लगाए जा रहे हैं। यह सब जो कुछ हो रहा है वह देश और समाज के खिलाफ एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है। अब अगर कोई रहे हिंदुस्तान में, खाये हिंदुस्तान में और नारे लगाए पाकिस्तान के तो इसे क्या बर्दाश्त किया जाना चाहिए? देश की सीमाओं की सुरक्षा हमारी सेनाएं कर रही है लेकिन देश की जो आंतरिक सुरक्षा की जो जिम्मेवारी है वह सिर्फ केंद्रीय गृह मंत्रालय की नहीं है। राज्यों की पुलिस और राज्यों के गृह मंत्रालयों की भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी केंद्र सरकार की है। गृह मंत्री अमित शाह का स्पष्ट कहना है कि कानून व्यवस्था को तभी बेहतर तरीके से संभाला जा सकता है जब सभी राज्य सरकारों और उनकी पुलिस के बीच बेहतर समन्वय होगा। राष्ट्रीय विरोधी तत्व और अपराधियों का एक राष्ट्रीय डाटा तैयार किया जा रहा है। जिससे इन अराजक तत्वों को पहचाना जा सके वह भले ही देश के किसी भी हिस्से में चले जाएं। आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल भी जरूरी है तथा सूचनाओं का आदान—प्रदान भी। इसके अलावा जो सबसे जरूरी है वह है सामाजिक जागरूकता। नागरिक सुरक्षा संगठनों और खुफिया तंत्र को मजबूत बनाना भी जरूरी है। यह विडंबना ही है कुछ राज्यों द्वारा इस आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे को तवज्जो नहीं दी गई है उदाहरण के तौर पर पश्चिमी बंगाल सरकार और बिहार सरकार द्वारा इस सम्मेलन में अपने गृह मंत्रियों को न भेजकर प्रतिनिधियों को भेजा जाना तो यही दर्शाता है। गृह मंत्रालय का काम कितना महत्वपूर्ण है इसे इससे भी समझा जा सकता है कि राज्यों के मुख्यमंत्री आमतौर पर गृह मंत्रालय अपने पास रखते हैं। इस सम्मेलन में जो चिंतन मंथन हो रहा है उसके कुछ ठोस निष्कर्ष निकलने चाहिए।