कांग्रेस की अनूठी गांधीगिरी

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उत्तराखंड कांग्रेस में आपसी खींचतान और गुटबाजी को खत्म करने का जो अनोखा तरीका प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने खोजा है वह अत्यंत ही हास्यापद है। एक दूसरे पर छींटाकशी और पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करने वाले नेताओं को अब उनकी ही पार्टी के नेता उनके घर जाकर फूलों का गुलदस्ता देकर उन्हें आत्मग्लानि का एहसास कराएंगे। पार्टी में अनुशासनहीनता को रोकने और सार्वजनिक मंचों पर आरोप—प्रत्यारोप लगाने वालों को अब कांग्रेस पार्टी आत्मा के आध्यात्म के जरिए सुधारेगी। सवाल यह है कि अगर राजनीति और नेताओं का आत्मबल इतना प्रखर और मजबूत होता तो आज क्या इस देश की सबसे पुरानी और मजबूत पार्टी की यह दुर्दशा हो रही होती? दूसरा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के नेताओं पर इस प्रयास का कोई फर्क पड़ेगा? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि कांग्रेस के नेता जब खुद की भी कोई बात नहीं सुनते तो वह पार्टी के दूसरे नेताओं की बात क्या सुनेंगे। कांग्रेस के नेता जिसके भी घर इस गांधीगिरी के फूल लेकर पहुंचेंगे वह इन फूल देने वालों को सबसे पहले अपने विरोधियों की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर समझेगा। उसे आत्मग्लानि कितनी होगी, होगी भी या नहीं होगी अलग बात है लेकिन उसकी आत्मा उसे अपने अपमान का बदला लेने के लिए जरूर प्रेरित करेगी और जब भी उसे बदला लेने का मौका मिलेगा वह बदला लेने से कतई भी नहीं चूकेगा। राज्य गठन से लेकर आज तक तो कांग्रेस में यही होता रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो डॉ हरक सिंह क्या आज कांग्रेस का हिस्सा हो सकते थे? भले ही 2016 में कांग्रेस में हुए बड़े दल बदल का कारण पूर्व सीएम विजय बहुगुणा रहे हो लेकिन हरीश की सत्ता को धराशाही करने और कांग्रेस को धूल में मिलाने के षड्यंत्र में हरक सिंह की क्या भूमिका रही थी? यह किसी से भी छिपा नहीं है। हरीश रावत के जिस स्टिंग ऑपरेशन ने कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया था उसकी पटकथा किसने लिखी थी। हास्यप्रद बात यह है कि हरीश रावत की लाख कोशिशें भी डॉ हरक सिंह को कांग्रेस में आने से नहीं रोक सकी। अब एक बार फिर डॉ हरक सिंह के इर्द—गिर्द घूम रही कांग्रेस की आंतरिक राजनीति के कारण कांग्रेस में कोहराम मचा हुआ है। जिसके डैमेज कंट्रोल के लिए प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को बुलाना पड़ा। देवेंद्र यादव और करण माहरा के पास ऐसा कोई नुस्खा नहीं है जो कांग्रेसियों की आत्मा को झकझोर सके। उन्हें यह समझा सके की अब तो दुर्दशा की इंतेहा हो चुकी है अब तो कांग्रेस के नेताओं को यह समझ आ जाना चाहिए कि अगर कांग्रेस नहीं रहेगी तो उनका भी कोई वजूद शेष नहीं बचने वाला है। आधे कांग्रेसी नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा व आप के साथ जा चुके हैं जो बचे हैं उनमें से भी जो जाना चाहते हैं वह चले जाए लेकिन जो शेष बच जाए वह तो कम से कम कांग्रेस के हो कर रहे। तभी कांग्रेस का उद्धार संभव है।

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