रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग अब अत्यंत ही नाजुक मुकाम पर पहुंच चुकी है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन की चिंताएं अब बढ़ती जा रही है। पहले ही दिन से यूक्रेन के सरेंडर करने की आस लगाए बैठे पुतिन पर अब अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है और वह विलेन की भूमिका में आते जा रहे हैं लेकिन वह झुकने को तैयार नहीं है तथा यह युद्ध अब रूस की प्रतिष्ठा और पुतिन की नाक का सवाल बन गया है। लंबे खिंचते युद्ध के बीच उनके द्वारा अपनी परमाणु फोर्स को अलर्ट किए जाने की घोषणा से पूरे विश्व में हड़कंप मचा हुआ है। भले ही इस बात को सब जानते हैं कि यह काम करना आसान नहीं है और परमाणु हथियार सिर्फ पुतिन और रूस के पास ही नहीं है साथ ही यह भी सब जानते हैं कि पुतिन जो कह रहे हैं उसके परिणाम कितने घातक होंगे यह महज दबाव बनाने की रणनीति ही है लेकिन उनकी इस चेतावनी या धमकी को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि चीन को छोड़कर अब पूरा विश्व रुस व पुतिन के विरुद्ध खड़ा होता दिख रहा है। भारत ने रूस और यूक्रेन की इस जंग में तटस्थ रहने की रणनीति अपनाई जा रही है। इस युद्ध को लेकर भारत की चिंता यूक्रेन में फंसे अपने हजारों छात्र और नागरिकों की सुरक्षा तक ही सीमित है। अब तक सिर्फ एक हजार के आस पास ही छात्रों को यूक्रेन से वापस लाया जा सका है जबकि इनकी संख्या 18 से 20 हजार के बीच है। क्योंकि यह जंग अभी समाप्त होती नहीं दिख रही है और हर दिन स्थितियां और अधिक खतरनाक होती जा रही है इसलिए भारत की चिंताएं भी लगातार बढ़ती ही जा रही है। भारत ने अपनों को यूक्रेन से वापस लाने के लिए अभियान गंगा चलाया जा रहा है। तथा यूक्रेन के पड़ोसी देशों से संपर्क कर अपने छात्रों की सकुशल वापसी के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कई हाई लेवल बैठक कर चुके हैं अब उन्होंने अपने चार मंत्री भी विदेश भेजे हैं लेकिन अब यह काम आसान नहीं रह गया है क्योंकि यूक्रेन में आवाजाही सुरक्षित नहीं है। वहीं वापस लाए जाने वालों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। ऐसे हालात इसलिए भी पैदा हुए हैं क्योंकि यूक्रेन में फंसे भारतीयों द्वारा युद्ध से पूर्व भारत सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी को नजरअंदाज किया गया। अगर यह छात्र समय पर ध्यान देते तो शायद वह इस मुसीबत से बच सकते थे। भारत सरकार द्वारा इन्हें बहुत बार यूक्रेन छोड़ने को कहा गया था लेकिन अब वह खुद तो मुसीबत में फंसे ही हैं उनके परिजन भी परेशान हैं। हालांकि सरकार सभी तरह के प्रयास कर रही है लेकिन युद्ध के दौरान किसी भी अनिश्चितता से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। युद्ध विराम की स्थिति में ही सब कुछ ठीक हो सकता है लेकिन उसके अभी आसार कम ही दिखाई दे रहे हैं। प्रयास और ध्ौर्य ही एकमात्र उपाय है जिस पर भारत सरकार काम कर रही है नतीजा क्या होगा समय ही बताएगा?