शिक्षा के साथ भद्दा मजाक

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शिक्षा जिसे योग्यता का आधार माना जाता है उस शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा एक चिंतनीय सवाल है। देश की शिक्षा नीति और सरकारों ने शिक्षा क्षेत्र को जो नुकसान पहुंचाया उसकी तो कोई सीमा है ही नहीं लेकिन कोरोना काल ने तो मानों शिक्षा जगत की कमर ही तोड़ कर रख दी है। भले ही कोरोना के कारण सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हो लेकिन शिक्षा क्षेत्र को जो क्षति हुई है वह अपूरक है। कोरोना के कारण स्कूल कॉलेजों के बंद रहने से न सिर्फ शिक्षा का जरूरी वातावरण पूरी तरह छिन्न—भिन्न हो गया बल्कि बच्चों के भविष्य पर और उनके कैरियर पर अनेक सवाल खड़े हो गए हैं। बिना परीक्षा बच्चों को पास किया जाना शिक्षा जगत की एक ऐतिहासिक घटना है। उससे भी अधिक हैरान करता है शत—प्रतिशत बच्चों को पास किया जाना। बच्चे स्कूल नहीं जा सके घरों में ऑनलाइन ठीक से पढ़ाई नहीं कर सके। इम्तिहान नहीं दे सके और परीक्षा परिणाम से पहले ही यह भी जान सके कि वह पास हो गए हैं। तमाम राज्य सरकारों ने इसका पहले ही ऐलान कर दिया था कि किसी भी छात्र को फेल नहीं किया जाएगा। इस सब के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इन छात्रों का जो मनमाने तरीके से मूल्यांकन किया गया उसमें उन्हें शत प्रतिशत अंक दिए गए। उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में पिथौरागढ़ के 2 छात्रों द्वारा 500 में से 500 अंक हासिल करना इसका एक उदाहरण है। शिक्षा के इतिहास में इस तरह का चमत्कार शायद पहले कभी नहीं हुआ है। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की तमाम राज्यों के बोर्डो व अन्य बोर्ड की परीक्षा में इस साल छात्रों ने जितने अच्छे अंक प्राप्त किए हैं वह एक रिकॉर्ड है। इससे पूर्व में जब बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आते थे तो लोगों के बीच इस बात की चर्चा आम तौर पर होती थी कि चाहे कोई छात्र कितना भी मेधावी क्यों न रहा हो वह सभी विषयों का ज्ञाता कैसे हो सकता है। 95 से 98 फीसदी अंक हासिल करने वाले और मेरिट लिस्ट टापर्स की सूची में शामिल होने वाले छात्रों के बारे में कई तरह की चर्चाएं आम रहती थी। अभी कुछ साल पहले ऐसे ही बिहार बोर्ड के कुछ टॉपर से जब मीडिया का सामना हुआ तो पता चला कि वह परीक्षा में बिना बैठे ही टापर्स बन गए। बाद में जब हंगामा खड़ा हुआ तो यह बच्चे हीरो से जीरो साबित हुए। सवाल यह है कि ऐसी शिक्षा का क्या लाभ और औचित्य है। सिर्फ नाम के लिए हासिल की गई डिग्रियंा और प्रमाण पत्रों से इन बच्चों और समाज तथा देश को क्या हासिल हो सकता है? यह न सिर्फ देश व समाज के लिए बल्कि शिक्षा जगत और सरकारों के लिए भी चिंतनीय सवाल है। शिक्षा के साथ होने वाला यह खिलवाड़ किसी के लिए भी हितकर नहीं है।

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